Bihar Assembly Election: टिकट से इनकार कर सकते हैं कांग्रेस के कुछ MLA, सबके अपने-अपने कारण

पटना, अरुण अशेष। कांग्रेस ने सभी मौजूदा विधायकों को टिकट देने का फैसला किया है। यह घोषणा उस परम्परा के तहत है, जिसमें मौजूदा विधायकों को टिकट से नवाजा जाता है। लेकिन कांग्रेस के साथ दूसरी स्थिति है। उसके सभी विधायक टिकट से उपकृत नहीं होना चाहते हैं। वजह बदला हुआ समीकरण है, जिससे कुछ विधायकों को असुरक्षा का अहसास हो रहा है। दो विधायक उम्र के आधार पर चुनाव लड़ने से परहेज कर सकते हैं। उन्हें अपने पुत्रों के लिए टिकट चाहिए। ये हैं सदानंद सिंह और रामदेव राय। सदानंद सिंह नौ बार विधायक रह चुके हैं। जबकि, रामदेव राय छह बार विधायक और एक बार लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं।

जेडीयू से चुनाव लड़ सकतीं हैं नवादा की पूर्णिमा यादव
नवादा जिले के गोबिंदपुर विधानसभा क्षेत्र की कांग्रेस विधायक पूर्णिमा यादव इस बार जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर चुनाव लड़ सकती हैं। वे 2010 में नवादा से जेडीयू की विधायक थीं। महागठबंधन बना तो राष्‍ट्रीय जनता दल जद ने नवादा पर दावा किया। बदले में पूर्णिमा गोबिंदपुर आ गईं। वह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। पूर्णिमा कांग्रेस उम्मीदवार की हैसियत से जीतीं। उनके पति और जेडीयू विधायक कौशल यादव कहते हैं-पूर्णिमा इस बार जेडीयू टिकट पर चुनाव लड़ेंगीं। विधानसभा क्षेत्र नहीं बदलेगा।
टिकट की गारंटी हो तो दल-दगल नहीं करेंगे मनोहर
बीते चुनाव में जेडीयू ने अपने तीन विधायक कांग्रेस को दिए थे। पूर्णिमा यादव के अलावा भोरे (सुरक्षित) के अनिल कुमार और मनिहारी (सुरक्षित) के मनोहर प्रसाद सिंह। कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि मनोहर प्रसाद सिंह ने नेतृत्व को कह दिया है कि अगर टिकट की गारंटी हो तो दल-बदल नहीं करेंगे। जबकि, अनिल कुमार ने अपनी राय नहीं दी है। अनिल कुमार उन चुनिंदा विधायकों में से हैं, जिन्हें कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू में रहने का अवसर मिला है। वे पहली बार 1985 में कांग्रेस के टिकट पर ही विधायक बने थे।
बेटों के लिए टिकट छोड़ेंगे ये विधायक
- कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह ने पिछले विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान ही कह दिया था कि उनका यह आखिरी चुनाव है। खबर है कि वे अपने पुत्र शुभानंद को उत्तराधिकार सौंप कर चुनावी राजनीति से अलग होना चाहते हैं। मनोनयन के जरिए किसी सदन में चले जाएं, यह अलग बात है। सदानंद सिंह कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं। पार्टी उनकी इच्छा अनादर नहीं करेगी।
- छह बार बेगूसराय जिला के बछवाड़ा से विधायक बने रामदेव राय भी अपने पुत्र शिवप्रकाश गरीब दास को विरासत सौंपने के बारे में विचार कर रहे हैं। 1972 में पहली बार विधायक बने राय पांच बार कांग्रेस टिकट पर विधानसभा का चुनाव जीते हैं। एक बार निर्दलीय के तौर पर भी उनकी जीत हुई है। 1984-89 के बीच वे लोकसभा सदस्य थे।
कांग्रेस ने आरजेडी को दिया था उम्मीदवार
पिछले चुनाव में आरजेडी ने कांग्रेस को एक उम्मीदवार दिया था- समीर कुमार महासेठ। मधुबनी से आरजेडी की उम्मीदवारी मिलने के दिन समीर कांग्रेस पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष थे। आरजेडी और कांग्रेस एक ही गठबंधन में हैं। सो, समीर को इधर-उधर भटकने की जरूरत नहीं है। समीर खुद विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं। उनके पिता स्व. राजकुमार महासेठ निर्दलीय और जनता दल के टिकट पर दो बार विधायक थे।
संदेह के घेरे में इनकी प्रतिबद्धता
राहुल गांधी की पिछली वर्चुअल बैठक में पूर्व मंत्री डा. शकीलउज्जमा ने उन विधायकों का मामला उठाया था, जिनकी प्रतिबद्धता संदिग्ध है। आरोप है कि 16 विधायकों ने जेडीयू में जाने के लिए एक आवेदन पर दस्तखत किया था। दो और विधायक नहीं मिले, इसलिए विभाजन नहीं हो पाया। हरेक पार्टी का मान्य फॉर्मूला होता है कि वह सभी मौजूदा विधायकों को टिकट दे। व्यवहार में यह फॉर्मूला ही रह जाता है। इस पर अमल करना किसी दल के लिए बाध्यकारी नहीं है। इसलिए संदिग्ध प्रतिबद्धता वाले विधायक इत्मीनान में नहीं हो सकते हैं। हालांकि, अब वे मजबूर हैं। क्योंकि इनमें से अधिसंख्य भारतीय जनता पार्टी को हराकर ही पिछला चुनाव जीते थे। सब जेडीयू में शामिल हों और टिकट भी मिल जाए, यह जरूरी नहीं है।

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