एक दशक से अधिक समय से बांध पर बसर कर रहा पूर्व विधायक चुल्हाई दुसाध का परिवार

बेलसंड-शिवहर के पूर्व कांग्रेस विधायक चुल्हाई दुसाध का परिवार विगत एक दशक से भी अधिक समय से बांध पर बसर कर रहा है। चुल्हाई दुसाध उर्फ चुल्हाई हजारे आजादी के बाद पहले बिहार विधानसभा चुनाव में बेलसंड-शिवहर संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस टिकट पर निर्वाचित हुए थे। उस चुनाव में संयुक्त विधानसभा क्षेत्र से एक अनुसूचित जाति के और एक सामान्य जाति के विधायक एक साथ निर्वाचित हुए थे। सादगी और ईमानदारी के प्रतीक रहे चुल्हाई दुसाध सत्ताधारी दल के विधायक रहते हुए भी पटना, मुजफ्फरपुर या मीनापुर के गंगबरार पानापुर चक्की गांव में जमीन नहीं खरीद पाए। वर्ष 1957 में बेलसंड-शिवहर संयुक्त क्षेत्र नहीं रहा। जब मेजरगंज आरक्षित सीट बनाया गया तो चुल्हाई हजारे 1962 में वहां से चुनाव लड़े परन्तु हार गए। वे 1967 में सकरा सुरक्षित सीट पर भी चुनाव हार गए। वर्ष 1979 में उनका निधन हो गया। विधायक रहते हुए और बाद में भी चुल्हाई दुसाध साइकिल से चलते थे। बाद में वे गांव में दो-चार रुपये मासिक फी पर बच्चों को ट्यूशन बढ़ाने लगे। जो फी देने की स्थिति में नहीं थे, उन्हें भी अपने बच्चों के साथ नि:शुल्क पढ़ाते थे। बूढ़ी गंडक नदी की बाढ़ में बार-बार घर बहने-उजड़ने के बाद उनका परिवार विगत एक दशक से बांध किनारे झोपड़ी बनाकर रहता है। इस बार की बाढ़ में झोपड़ी में फिर पानी प्रवेश कर गया। चुल्हाई दुसाध के पुत्र चिंताहरण पासवान, मणिकांत पासवान एवं अमरनाथ पासवान का परिवार बांध पर प्लास्टिक की सिरकी टांगकर बसर कर रहा है। एक भाई ग्रामीण क्वेक हैं। अन्य भाइयों का परिवार मेहनत-मजदूरी से चल रहा है।

पांच बार उजड़ा आशियाना हर साल की बाढ़ में परिवार की कमर टूट गई। मीनापुर प्रखंड की हरशेर पंचायत के गंगबरार गांव में खपरैल घर बूढ़ी गंडक नदी में बह गया तो चुल्हाई दुसाध ने बथान को घर बनाया। उसके बाद बांध के अंदर झोपड़ी खड़ी कर तीसरा ठिकाना बनाया। झोपड़ी भी बह गई तो बांध की जमीन पर बाहर झोपड़ी खड़ी की। वर्ष-दर-वर्ष बूढ़ी गंडक पश्चिम में कटाव करती गई। जिस जमीन पर खपरैल मकान था, वह पूरब में रेत में बदल गई। करीब एक दशक पहले बांध में कटाव शुरू हुआ तो मरम्मत के लिए मिट्टी काटने में बाहर वाली झोपड़ी भी उजड़ गई। चिंताहरण एवं उनके भाइयों समेत करीब बांच दर्जन परिवार बाढ़ के समय चार महीने बांध पर सिरकी में और बाद में नीचे झोपड़ी में गुजर-बसर करता है।
फटेहाली में गुजरी पत्नी की जिंदगी चुल्हाई हजारे के निधन के बाद परिवार फटेहाली के दौर से गुजरने लगा। उनकी पत्नी बेदामी देवी उर्फ राजमती देवी को पूर्व विधायक की पत्नी के लिए निर्धारित पेंशन तक नहीं मिली। मां का आवेदन लेकर चिंताहरण पासवान मुजफ्फरपुर से पटना तक वर्षों दौड़ते रहे। बेदामी देवी बांध पर खजूर की चटाई बुनकर जीवन-यापन करती रहीं। पेंशन और पुनर्वास के आवेदनों से चिंताहरण का बक्सा भरा है। चिंतारण एवं उनके भाइयों समेत गांव के दर्जनों परिवारों के पुनर्वास के लिए जमीन चिन्हित कर मापी की गई। नक्शा बना और अंचलाधिकारी, जिला भूअर्जन पदाधिकारी एवं डीएम कार्यालयों में फाइलें दौड़ती रहीं। पेंशन और पुनर्वास के लिए टकटकी लगाए बेदामी देवी वर्ष 2018 में इस दुनिया से विदा हो गईं।
 

अन्य समाचार