बिहार को डॉल्फिन स्टेट घोषित करे सरकार : डॉ. सत्येन्द्र

हाजीपुर : पटना के जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, गंगा भूमि प्रादेशिक केंद्र, पटना में गांगेय एवं समुद्री डॉल्फिन के संरक्षण को लेकर एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार में एसएनएस कॉलेज, हाजीपुर के जंतु विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ.सत्येन्द्र कुमार सहित पूरे भारत से लगभग 400 प्रोफ़ेसर एवं छात्र प्रतिभागी के रूप में सम्मिलित हुए। डॉ. सत्येंद्र ने कहा कि हाजीपुर के गंडक नदी में भी 150 से ज्यादा डॉल्फिन हैं। गंडक के डॉल्फिन संरक्षण के लिए सरकार एवं समाज के लोगों को ठोस कदम उठाने की जरूरत है। साथ ही हाजीपुर से भी यह मांग की कि बिहार को डॉल्फिन स्टेट घोषित की जाए।


वेबिनार में यह भी प्रश्न रखा कि वैज्ञानिकों को इस दिशा में भी काम करना चाहिए कि डॉल्फिन के प्रजनन को कैसे बढ़ाया जाए। क्या गंडक नदी हाजीपुर में इस विषय पर शोध किया जा सकता है? वेबिनार में कहा गया कि डॉल्फिन को हम अक्सर मछली समझने की भूल कर देते हैं लेकिन वास्तव में डॉल्फिन एक मछली नहीं है। वह तो एक स्तनधारी प्राणी है। डॉल्फिन को अकेले रहना पसंद नहीं है? यह सामान्यत: समूह में रहना पसंद करती है। इनके एक समूह में 10 से 12 सदस्य होते हैं। भारत में डॉल्फिन गंगा और गंडक में पाई जाती है। 60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तैर सकती डाल्फिन
डॉल्फिन 60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तैर सकती है। डॉल्फिन 10-15 मिनट तक पानी के अंदर रह सकती है, लेकिन वह पानी के अंदर सांस नहीं ले सकती। उसे सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आना पड़ता है।
मीठे पानी की डॉल्फिन भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव है। यह स्तनधारी जंतु पवित्र गंगा की शुद्धता को भी प्रकट करती है, क्योंकि यह केवल शुद्ध और मीठे पानी में ही जीवित रह सकती है। वेबिनार में बताया गया कि भारत के नदियों में बढ़ते प्रदूषण से डॉल्फिनों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। जहां दो दशक पूर्व भारत में इनकी संख्या 5000 के आस-पास थी, वहीं वर्तमान में यह संख्या घटकर करीब डेढ-दो हजार रह गई है। भारत में नदी की गहराई कम होने और नदी जल में उर्वरकों व रसायनों की अत्यधिक मात्रा मिलने से भी डॉल्फिन के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। इनके संरक्षण के लिये बिहार में गंगा नदी में विक्रमशिला डॉल्फिन अभ्यारण्य बनाया गया है। इस वेबिनार में बोलते हुए जूलॉजिकल सर्वे ऑफ कोलकाता के निदेशक डॉ. कैलाश चंद्र ने कहा कि भारत में गांगेय डॉल्फिन राष्ट्रीय जलीय जन्तु है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से गांगेय एवं समुद्री डॉल्फिन के संरक्षण पर एक राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रोजेक्ट डॉल्फिन की घोषणा की है जो देश में प्रोजेक्ट टाइगर तथा प्रोजेक्ट एलिफैंट के तर्ज पर चलेगा। जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, डॉल्फिन के संरक्षण में हर संभव सहयोग करेगा. हम प्रशिक्षित लोगों के साथ मिलकर डॉल्फिन को बचाने की मुहिम जल्द शुरू कर रहे हैं. डॉ. चंद्रा ने जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, गंगा भूमि प्रादेशिक केंद्र, पटना के वरीय वैज्ञानिक एवं संयुक्त निदेशक डा. गोपाल शर्मा के डॉल्फिन के ऊपर किये गए शोध की प्रशंसा करते हुए कहा कि अगर भविष्य में प्रोजेक्ट डॉल्फिन के ऊपर शोध के कार्य होंगे तो इस वे विभाग के सबसे उपयुक्त वैज्ञानिक होंगे। वहीं श्रीमाता वैष्णव देवी विश्वविद्यालय कटरा, जम्मू के कुलपति और डॉल्फिनमैन के नाम से विख्यात प्रो. आरके सिन्हा ने डॉल्फिन की उत्पत्ति, इसके इतिहास एवं आज तक किये गए इसके संरक्षण पर प्रकाश डाला। प्रो. सिन्हा ने डॉल्फिन के ब्लाइंड होने के रहस्यों पर भी शोध करने की जरूरत बताई। उन्होंने डॉल्फिन के संरक्षण पर जोर देते हुए कहा कि इन दिनों सोन के क्षेत्रों में बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश की सीमा पर डॉल्फिन की संख्या घट रही है जो चिता की बात है। वहीं डब्लूटीआई नई दिल्ली के उप-निदेशक डॉ. समीर कुमार सिन्हा ने इस वेबिनार में बोलते हुए इस बात का जिक्र किया कि डॉल्फिन को बचाने में गंगा में रहने वाले कई अन्य जीवों की भूमिका भी अहम् है। इनमें गंगा के घड़ियाल, मछली, स्थानीय एवं प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं। अगर हमें गांगेय डॉल्फिन का संरक्षण करना है तो हमें गंगा के इन जीवों के संरक्षित करना जरूरी है। उन्होने घरियाल के संरक्षण पर विशेष रूप से बल देते हुए कहा किसी समय में गंडक में केवल 30 घड़ियाल हुआ करते थे परन्तु आज 2000 से ज्यादा घड़ियाल हैं वहीं जूलॉजिकल सर्वे ऑफ पटना के वरीय वैज्ञानिक और ऑफिसर इंचार्ज डॉ. गोपाल शर्मा ने गंगा डॉल्फिन के साथ साथ समुद्री डॉल्फिन के बचाव के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बधाई दी।
धन्यवाद ज्ञापन गंगा समभूमि प्रादेशिक केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. राहुल जोशी ने किया।
Posted By: Jagran
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