प्रणब दा के निधन से जिले में शोक की लहर

सीतामढ़ी। भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन से पूरा जिला शोकाकुल है। उनकी मृत्यु देश के लिए बहुत बड़ी क्षति बताई गई है। लंबे राजनीतिक सफर में वह कई शीर्ष पदों पर रहे हैं। इनमें वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री का पद शामिल है। 2012 में प्रणब दा राष्ट्रपति बने। इस पद पर वह 2017 तक रहे। अपने मृदुभाषी स्वभाव व अदभुत व्यक्तित्व से वैसे तो वे सभी दलों के चहेते थे मगर कांग्रेस के लिए उनको संकटमोचक कहा जाता था। जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विमल शुक्ला ने उनके निधन की सूचना पर गहरा शोक व्यक्ति किया और कहा कि एक अभिभावक के खोने जैसा मुझे सदमा लगा है। शुक्ला ने कहा कि प्रणब दा से कई बार मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उन्होंने हमारे राष्ट्र के विकास पथ पर एक अमिट छाप छोड़ी है। शुक्ला ने कहा कि मंगलवार को जिला कांग्रेस कमेटी मंगलवार को कांग्रेस मुख्यालय ललिताश्रम में शोकसभा आयोजित कर श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी। जिला कांग्रेस कमेटी के सत्येंद्र कुमार तिवारी, परवेज आलम अंसारी, सीताराम झा, शिवशंकर शर्मा, नीतेश मिश्रा, आदित्य मिश्रा, संजय कुमार, मनीष शुक्ला, लीलाधर पंडित, अंजार उल हक, तोहिद, डॉ. मोमिनुल हक, मदन कुशवाहा, विमलेश झा, उषा शर्मा, सुनील कुमार, सुमन संजय राम, वीरेंद्र राम, राघवेंद्र राम, महेंद्र पासवान आदि ने शोक व्यक्त करते हुए प्रणब दा को शत-शत नमन किया है।


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राष्ट्रपति बनने से पहले पीएम की रेस में थे प्रणब दा
जिलाध्यक्ष शुक्ला ने कहा कि जहां तक मुझे जानकारी है कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने से पहले यह अनुमान लगाया गया था कि प्रणब दा पीएम के पद पर काबिज होंगे।
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उनका राजनीतिक सफर1969 में शुरू हुआ। उन्होंने तब स्वतंत्र उम्मीदवार रहे वीके कृष्णा मेनन के चुनाव अभियान का प्रबंधन किया। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें कांग्रेस में शामिल होने की पेशकश की। उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। 1969 में इंदिरा गांधी ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनने में मदद की। 1975, 1981, 1993 और 1999 में उन्हें फिर से राज्यसभा के लिए चुना गया। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन्हें राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस से साइडलाइन किया गया। फिर 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने मुखर्जी को योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया। 1995-1996 तक मुखर्जी ने नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया। 2004 में वह लोकसभा के नेता बने। 2004 से उन्होंने तीन महत्वपूर्ण मंत्रालयों-विदेश, रक्षा और वित्त की कमान संभाली। फिर 2012 में राष्ट्रपति बनें।
Posted By: Jagran
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