सट्टे के दलदल में संभ्रांत परिवार के युवा, कई ने गंवाई जान

मोतिहारी। क्रिकेट मैच हो या चुनाव परिणाम, सट्टा बाजार का गर्म होना आम बात है। मोटी रकम कमाने के शॉर्टकट के कारण शहर के संभ्रांत लोग और युवा सट्टे की चपेट में है। बड़ी रकम गंवाने के बाद सट्टा लोगों की जान पर बन रहा है। शहर के विभिन्न इलाकों में इस तरह के कई गिरोह काम कर रहे, जिनतक पुलिस व प्रशासनिक तंत्र पहुंच पाने में असफल साबित हो रही है। सर्वाधिक युवा आईपीएल में करोड़ों का सट्टा लगा कर परिवार की गाढ़ी कमाई लुटा चुके है। कई लोगों ने तो अपनी संपति बेच कर सट्टे में हारी गई रकम का भुगतान किया तो, कई ने आत्म हत्या कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली है। वहीं कुछ ऐसे भी लोग है तो शहर छोड़ अन्य प्रदेशों में शरण लिए हुए है। पिछले कुछ सालों में सट्टेबाजों का मजबुत रैकेट शहर के विभिन्न मोहल्लों में फल-फुल रहा है। फटाफट क्रिकेट बना है सटोरियों के कमाई का जरिया फटाफट क्रिकेट खेल प्रेमियों के लिए जितना मनोरंजक है, उससे कहीं अधिक यह सटोरियों के लिए कमाई का जरिया बन चुका है। सट्टे में पैसे हारने के बाद लोग सटोरियों के दबाव में आकर अपनी जान तक गंवा दे रहे हैं। शहर में ही पिछले तीन सालों में शहर के संभ्रांत परिवारों के तीन लोग सट्टे में हार के अवसाद से जान दे चुके हैं। जबकि एक युवक को समय रहते परिवार के लोगों ने बचा लिया। कई ऐसे लोग भी है तो समाज में अपनी प्रतिष्ठा को लेकर अपनी गाढ़ी कमाई से अर्जी गई संपति बेच इससे निजात पाए है। सट्टे को लेकर संजीदा नहीं है पुलिस शहर में मोबाइल के जरिए संचालित हो रहे सट्टे पर पुलिस संजीदा नहीं है। शहर में अंतरजिला व अंतरराज्यीय क्रिकेट सट्टा संचालित होने की बात सामने आने के बाद भी पुलिस इसे गंभीरता से नहीं ले रही है। अब मुख्यालय के अलावा जिले के ग्रामीण इलाकों में भी सट्टा चलने की बात सामने आने आ रही है। आने वाले दिनों में शुरू होने वाले आईपीएल टूर्नामेंट को लेकर एक बार फिर इन सटोरियों का गिरोह शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में सक्रिय हो चला है। अबतक पुलिस को इस अवैध रूप से संचालित गिरोह को बेनकाम करने में कामयाबी नहीं मिली है, जबकि शहर में पूरा संगठित गिरोह काम कर रहा है। ऐसे समझें पूरा नेटवर्क हर शहर में एक प्रमुख सटोरिया होता है, जो नागपुर या मुंबई में बैठे बुकी के संपर्क में रहता है। मुखिया बनने के लिए वह बुकी को एडवांस रकम जमा करता है। फिर शहर का यही मुखिया अपने अलग-अलग एजेंट बनाता है। वह भी अपने इन एजेंटों से एक निश्चित एडवांस रकम वसूलता है, ताकि वे रुपए खाकर भाग न जाएं। ये एजेंट अपने स्तर पर लड़के तैयार करते हैं, जिन्हें एक खास भाषा में पंटर कहा जाता है। ये पंटर ही आम लोगों से फोन पर बातचीत करके दांव फिक्स करते हैं। परिवार पर पैसे को लेकर बनाते है दबाव पंटर उन्हीं सटोरियों का गेम लेते हैं, जिनसे उन्हें वसूली की पूरी उम्मीद होती है। विश्वास पात्र लोग अगर धोखा दें तो पैसों की वसूली के लिए बाउंसरों की फौज हैं। हारने पर सटोरिये को पैसे नहीं देने पर घर में परिवार से तकादे से लेकर मारपीट, बच्चे व परिवार को देख लेने की धमकी तक दी जाती है। अगर खाईवालों को हल्के में लें तो बाउसंर और गुंडों की टीम के जरिये हारने वाले पर दबाव बनाते हैं। देर होने पर ब्याज तक वसूला जाता है। आदतन जुआरी ऐसे दबाव से ज्यादा परेशान नहीं होते लेकिन संभ्रांत लोग जो शौक में बड़ा सट्टा लगा बैठते हैं, ऐसा दबाव नहीं झेल पाते और डिप्रेशन में आने और जान तक देने की नौबत आ जाती है। वर्जन हमारी पूरी कोशिश रहती है पकड़ने की, लेकिन सट्टेबाज शहर व शहर से बाहरी जगहों पर रहकर सट्टा चलाते हैं। इससे पकड़ने में कामयाबी नहीं मिल पाती। कुछ लोग हमारी नजरों में हैं, जिनपर पुलिस की पैनी नजर है। साथ ही उनकी गतिविधियों पर भी ध्यान दिया जा रहा है। अरूण कुमार गुप्ता, पुलिस उपाधीक्षक

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सदर, पूर्वी चंपारण।
Posted By: Jagran
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