स्वर्गीय रघुवंश प्रसाद सिंह का कॉलेज के प्रोफेसर से लेकर लालू यादव के 'ब्रह्म बाबा' तक का सफर

13 Sep, 2020 04:11 PM | Saroj Kumar 515

समाजवादी आंदोलन का एक मजबूत स्तंभ माने जाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन के साथ ही समाजवाद के एक युग का अंत हो गया. खांटी ग्रामीण परिवेश की वेश-भूषा वाले रघुवंश बाबू बहुत ही ज्ञानसमृद्ध और सामाजिक-ऐतिहासिक विषयों का गहन जानकार थे. इनकी शैक्षणिक योग्यता कुछ यूं थी कि इन्होंने साइन्स से ग्रेजुएट और गणित में मास्टर डिग्री हासिल की थी.


कर्पूरी ठाकुर ने भांप ली थी योग्यता
सीतामढ़ी के एक कॉलेज में गणित पढ़ाने वाले डॉ.रघुवंश प्रसाद सिंह 1962 में ही डॉ.राम मनोहर लोहिया की पत्रिका 'चौखंभा राज' में लिखने लगे थे. उसी दौर में वे कर्पूरी ठाकुर की नजर में आए और इनकी राजनैतिक योग्यता को भांप कर कर्पूरी ठाकुर ने इन्हें अपने साथ जोड़ लिया. इसके साथ ही रघुवंश बाबू की राजनीत की सफर शुरु हो गई जो सन 1974 के छात्र आंदोलन में पूरी तरह अमिट छाप छोड़ गई.


अपनी योजनाओं को लेकर खूब चर्चा में रहे
रघुवंश बाबू की राजनैतिक परख और हाव-भाव कर्पूरी ठाकुर से मेल खाते थे. इसी कारण ऊंची जाति के नेता होने के बावजूद हर अगड़ी-पिछड़ी जाति के ये लोकप्रिय नेता हुआ करते थे. वैशाली से चार बार सांसद रहे रघुवंश बाबू मनमोहन सिंह की सरकार में 2004 से 2009 तक केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री भी रहे. इस दौर में भी अनेकों केंद्रीय योजनाओं को लेकर ये खूब चर्चे में रहे और अपने सफल नेतृत्व के कारण सबके चहेते भी.


कभी आरजेडी से किनारा नहीं किया


लगभग तीन दशक से वे लगातार लालू प्रसाद से जुड़े रहे. दलिय आस्था कुछ ऐसी थी कि किसी भी परिस्थिती में इन्होंने पार्टी से किनारा नहीं किया. इनकी इन्हीं विशेषताओं से लालू प्रसाद इन्हें प्यार से ब्रह्म बाबा कहते थे और राजनैतिक गलियारों में ये इसी नाम से जाने जाने लगे थे. मगर पिछले दिनों अचानक पार्टी से रघुवंश बाबू नाराज हो गए थे और तीन दिन पहले इस्तीफा तक दे दिया था.


समाजवाद के युग का हुआ अंत
तीन दिन से लालू यादव रूठे रघुवंश बाबू को मनाने में लगे थे. लेकिन इस बार ब्रह्म बाबा नहीं मानें और सबों से रूठ कर दुनिया से ही चले गए. उनके जाने के साथ ही एक प्रखर समाजवाद के युग का अंत हो गया.

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