1974 के आंदोलन में कर्पूरी ठाकुर के नजदीक हुए थे रघुवंश बाबू

जागरण संवाददाता, हाजीपुर:

समाजवादी नेता रघुवंश बाबू के राजनीतिक सफर की शुरुआत छात्र जीवन से ही हो गई थी। उन्होंने बिहार विश्वविद्यालय से गणित में स्नातकोत्तर और पीएचडी करने के बाद गोयनका कॉलेज सीतामढ़ी में प्राध्यापक के रूप में काम शुरू किया। इस क्रम में 1974 के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने बाद मीसा के अंतर्गत जेल भी गए। इसी आंदोलन में वे जननायक कर्पूरी ठाकुर के काफी करीब आ गए। कर्पूरी ठाकुर के गांव समस्तीपुर के पितौझिया (अब कर्पूरी ग्राम) में रघुवंश बाबू का ननिहाल है। ननिहाल के लोगों के माध्यम से ही वे कर्पूरी ठाकुर के भी काफी करीबी बने थे। देखते ही देखते दोनो का संबंध प्रगाढ़ बन गया था। इसलिए उनके राजनीतिक जीवन पर कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक व सामाजिक विचारधारा की स्पष्ट छाप थी। प्रोफेसर होने के बावजूद ठेठ गंवई अंदाज में परिचितों से बातचीत का अंदाज सभी को अपनी ओर सहज आकर्षित करता था। सबके लिए आसानी से सुलभ और किसी भी मुद्दे पर बेबाकी के साथ अपनी राय रखने के लिए चर्चित रघुवंश बाबू अपने दिल में किसी के प्रति कभी भी कोई खटास नहीं पालते थे।

1977 के चुनाव में सीतामढ़ी के बेलसंड विधानसभा के डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह जनता पार्टी उम्मीदवार बने। जीतने के बाद कर्पूरी ठाकुर के मंत्रिमंडल में ऊर्जा राजयमंत्री बने। बेलसंड से ही 1980, 1985 में चुनाव जीतते रहे। सन 1990 में पहली बार कांग्रेस उम्मीदवार प्रो. दिग्विजय सिंह से रघुवंश बाबू चुनाव हार गए। फिर 1990 में जब लालू प्रसाद की सरकार बनी और रघुवंश बाबू को विधान परिषद का सदस्य बनाया गया। वे परिषद में उप नेता फिर बाद में विधान परिषद के सभापति बने। इसके बाद 1995 के चुनाव में फिर उन्होंने बेलसंड से चुनाव जीता और ऊर्जा मंत्री बने। 1996 में वैशाली लोकसभा से चुनाव लड़े और जीत गए। फिर 1998, 1999 में वैशाली के सांसद बने और केंद्र में पशुपालन राज्य मंत्री बने। सन 2004 में उन्होंने वैशाली लोकसभा क्षेत्र से ही बाजी मारी और और यूपीए-वन में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बने। मनरेगा कानून लागू कर पूरे देश में काफी लोकप्रिय हुए। कहा जाता है कि मनरेगा के कार्य के बल पर यूपीए सरकार फिर सत्ता में लौटी। हालांकि 2009 चुनाव जीतने के बाद राजद ने सरकार में शामिल नहीं होने फैसला लिया। कहते हैं कि कांग्रेस के बहुत प्रयास के बावजूद रघुवंश बाबू केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए और अपनी पार्टी के फैसले पर कायम रहे। वे 37 वर्ष लगातार विभिन्न सदनों के सदस्य रहे लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में वैशाली से इनको हार का सामना करना पड़ा। 2014 में लोजपा के प्रत्याशी रहे रामाकिशोर सिंह और 2019 में लोजपा की वीणा देवी के हाथों रघुवंश बाबू को पराजय का मुख देखना पड़ा।
वैशाली के विकास के लिए जो बन पड़ा, किया
सांसद और केंद्रीय मंत्री के रूप में डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह से वैशाली के विकास के लिए जो भी बन पड़ा, वह उन्होंने किया। वैशाली के गांव-गिरांव में आज जो रोड कनेक्टिविटी दिखती है, वह रघुवंश बाबू की देन है। सांसद कोटे से वैशाली में कई सड़कें बनवाई। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में उन्होंने वैशाली जिले में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़कों का जाल बिछा दिया था। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र में बिजली के क्षेत्र में काफी काम कराया था। हर दस-पंद्रह घरों के लिए एक टुल्लू ट्रांसफार्मर उन्हीं के कार्यकाल में लगाए गए थे। राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना से वैशाली जिले के एक-दो नहीं, बल्कि सैकड़ों गांव रोशन हुए थे।
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हाजीपुर-सुगौली नई रेल लाइन को ले आवाज करते रहे बुलंद
हाजीपुर-सुगौली नई रेल लाइन वैशाली तक बनकर तैयार है। इस नई रेल लाइन पर ट्रेन का ट्रायल रन हो चुका है। आने वाले किसी दिन इसका उद्घाटन होना है। इस नई रेल लाइन की मांग को लेकर सांसद के रूप में डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह हमेशा सदन में आवाज उठाते रहे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जब वैशाली में इस नई रेल लाइन के शिलान्यास के लिए आए थे तो अपने संबोधन के बाद उन्होंने स्थानीय जनता की मांग पर रघुवंश बाबू का संबोधन कराया था। हाजीपुर से सुगौली तक नई रेल लाइन की एक सदी पुरानी मांग को लेकर रघुवंश बाबू भी लगातार सक्रिय रहे। यह अफसोस की ही बात है कि रघुवंश बाबू अपने जीते जी इस नई रेल लाइन का उद्घाटन होते नहीं देख सके।
अंत-अंत तक वैशाली के विकास के प्रति रहे चितित
डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह वैशाली के विकास को लेकर अपनी अंतिम सांस तक चितित रहे। यही कारण है कि राजद से कई दशकों पुराना नाता तोड़ने के बाद पिछले तीन-चार दिनों के अंदर वैशाली के विकास को लेकर रघुवंश बाबू ने दिल्ली एम्स से ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कई चिट्ठियां लिखीं। उन्होंने मुख्यमंत्री को अंतिम चिट्ठी 10 सितंबर को लिखी, जिसमें उन्होंने हाजीपुर में महात्मा गांधी सेतु मार्ग पर भव्य वैशाली द्वार का निर्माण कराने का आग्रह मुख्यमंत्री से किया। वैशाली के संदर्भ राष्ट्रकवि दिनकर की पंक्तियों को उत्कीर्ण कराने का भी अनुरोध किया। दिनकर के प्रति ऐसा लगाव कि अपने भाषणों में वे अक्सर रश्मिरथी की पंक्तियों का इस्तेमाल करते थे। खासकर संघर्ष के मौके पर। वैशाली की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हाजीपुर के एसडीएम रहे जगदीश चंद्र माथुर के नाम पर वैशाली में द्वार बनवाने का भी आग्रह किया। साथ ही काबूल के संग्रहालय में रखे भगवान बुद्ध के भिक्षापात्र को मंगवाने का भी उन्होंने अनुरोध किया। भगवान बुद्ध के अस्थिकलश को वैशाली लाने के लिए करते रहे संघर्ष
डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह का हमेशा से सपना रहा था कि वैशाली की धरोहर पर वैशाली का हक हो। यही कारण है कि वे भगवान बुद्ध के पवित्र अस्थिकलश को वैशाली में स्थापित कराने के लिए संघर्ष करते रहे। अभी अस्थिकलश सुरक्षा के ²ष्टिकोण से पटना संग्रहालय में रखा है। आज वैशाली में 72 एकड़ जमीन में बुद्ध सम्यक स्मृति संग्रहालय का निर्माण हो रहा है तो उसके पीछे भी कहीं ना कहीं उनका संघर्ष भी काम करता रहा है। चौमुखी महादेव मंदिर के विकास, मंदिर के बगल में सामुदायिक भवन का निर्माण, वैशाली में तीर्थंकर महावीर हाईस्कूल के पास भव्य गेट का निर्माण, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में वैशाली जिले के 54 हाईस्कूलों में सम विकास योजना से चार-चार कमरों का निर्माण, वैशाली में अनपढ़ मनरेगा मजदूरों के लिए देश का पहला बायोमेट्रिक एटीएम जैसे अनेक कार्य हैं, जिनके लिए यहां के लोग रघुवंश बाबू को याद रखेंगे।
Posted By: Jagran
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