चुनाव प्रचार के बदलते रंग, पैदल जत्था से वर्चुअल प्रचार तक का सफर

शेखपुरा। 1952 से अब तक हो रहे चुनावों में उम्मीदवारों तथा उनके समर्थकों के रंग-ढंग बदलने से साथ चुनाव प्रचार के तरीकों में भी जमीन-आसमान का बदलाव आया है। शुरू में उम्मीदवार तथा उनके समर्थक पैदल जत्थे बना कर चुनाव प्रचार करते थे। आज वर्चुअल प्रचार का जमाना आ गया है। जीवन के 90 वसंत पार कर चुके पुराने कम्युनिस्ट नेता यमुना लाल पुरानी यादों को ताजा करते बताते हैं कि पहले और आज के चुनाव प्रचार में काफी बदलाव आया है। चुनाव में पहले लोग जत्था बनाकर प्रचार करते थे। जिस गांव में रात हुई वहीं जत्थे का लंगर लगता था। सुबह होने के बाद अगले गांव की यात्रा शुरू होती थी। गांवों में आवागमन का साधन भी नहीं था। प्रचार में बदलाव 1962 में हुए तीसरे चुनाव से आया। तब चुनाव प्रचार में जीपें दिखने लगीं। इसके पहले 1957 के चुनाव में टमटम तथा बैलगाड़ी का इस्तेमाल जिले में देखा गया था। सीपीआई के जिला सचिव प्रभात पांडे बताते हैं। 1957 के विधानसभा चुनाव में शेखपुरा से कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ. श्रीकृष्ण सिंह थे। बिहार के मुख्यमंत्री रहे तब डॉ श्रीकृष्ण सिंह ने शेखपुरा में बैलगाड़ी तथा टमटम से अपना चुनाव प्रचार किया था। 1980 के दशक से चुनाव प्रचार में गाड़ियों का काफिला गांव की सड़कों पर भी फर्राटे भरने लगी। इस बार तो सभी संभावित उम्मीदवारों ने वर्चुअल चुनाव प्रचार की तैयारी में पूरी ताकत झोंक दी है। इस वर्चुअल प्रचार में उम्मीदवार घर बैठे ही सभी मतदाताओं से संपर्क साधने की जुगत भिड़ा रहे हैं। पार्टियां तथा उम्मीदवार वर्चुअल प्रचार के लिए अलग से आइटी सेल का गठन किया है।

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