बरहगैन नहर की उड़ाही व चीनी मिल चालू करने की आस में पथरा गई हैं बुजुर्गों की आंखें

शेखपुरा। बरबीघा विधानसभा क्षेत्र का चुनावी मुद्दा ठीक वैसा ही है जैसा बरसात आने पर मेंढ़क की आवाज। हर चुनाव में मुद्दे सुर्खियां बनते हैं परंतु उनका समाधान नहीं होता। राजनीति करने वाले टिकटों की जोड़-तोड़ में लगे रहकर पाला बदल जनता से मुंह मोड़े रखते है और जनता भी अपना मत देकर अपने मुद्दे की तिलांजलि भी उसी के साथ कर लेते हैं। बरबीघा विधानसभा बड़े मुद्दों में बरहगैन (सकरी नहर) का मुद्दा सबसे प्रमुख है। इस नहर से बरबीघा विधानसभा के शेखोपुरसराय, बरबीघा और शेखपुरा प्रखंड के कुछ हिस्सा समाहित है। बरहगैन नहर से इन तीनों प्रखंडों के 27 पंचायतों के दर्जनों गांव के खेतों की सिचाई होती है। नहर की उड़ाही वर्षों से नहीं होने अथवा कागजों पर कर लिए जाने की वजह से खेत प्यासे रह जाते हैं और किसान के घर के चूल्हे खामोश।


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बरहगैन नहर की उड़ाही का काम अधूरा : नवादा के पौरा से चलकर बरबीघा तक और टाटी नदी के माध्यम से शेखपुरा के कई प्रखंडों तक पहुंचने वाली नहर कि उड़ाही का काम नहीं हुआ है। कई जगहों पर अतिक्रमण कर लेने की वजह से नहर में पानी नहीं आता। वहीं नवादा के पौरा में नहर विभाग के द्वारा इधर पानी देने की व्यवस्था की गई है जहां के कर्मचारी के द्वारा भी पानी इधर छोड़ने में कोताही की जाती है। वहीं हर साल नहरों की साफ-सफाई के लाखों रुपये भी कागजों पर ही निकालने के आरोप लगते रहे हैं।
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चीनी मिल का वादा अब भी अधूरा : शेखोपुरसराय प्रखंड के लिए सबसे बड़ा मुद्दा चीनी मिल चालू करना होता है। इस प्रखंड की आधा दर्जन पंचायतों में ईख की खेती प्रमुखता से होती है। वारिसलीगंज का चीनी मिल बंद हो गया परंतु यहां के किसानों की उम्मीद अभी जिदा है। ईख की खेती किसान कर रहे हैं, परंतु नगद राशि की प्राप्ति किसानों को नहीं होती। साल भर मेहनत करने के बाद रस से गुड़ का मीठा बनाने में हार तोड़ मेहनत का काम होता है। किसान को उसकी आमदनी भी कम मिलती है।
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गड्ढे वाली सड़क पर क्रेडिट लेने की रही होड़, पर शुरू नहीं हुआ काम :
बरबीघा नगर का गड्ढे वाली सड़क के रूप में फेमस तीन किलोमीटर सड़क में नेताओं द्वारा क्रेडिट लेने की होड़ रही। अनशन भी हुए, लेकिन आज तक काम शुरू नहीं हो सका। वैसे तो पंद्रह दिन पहले ही इसके निर्माण शुरू होने के दावे किए गए परंतु पंद्रह दिन बाद भी काम होता दिखाई नहीं दे रहा। इस गड्ढे वाली सड़क में तीन फीट से लेकर पांच फीट तक बड़े-बड़े गड्ढे तीन किलोमीटर तक है। श्रीकृष्ण चौक से लाला बाबू चौक होते हुए नारायणपुर मोहल्ला एवं गंगटी गांव तक सड़क जर्जर है।
1956 से बरबीघा नहीं बना अनुमंडल : बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह का जन्म भूमि बरबीघा अभी तक अनुमंडल बनने की आश लगाए है। 1956 में ही बक्शी कमीशन का गठन कर दिया गया था, जिसके द्वारा अनुमंडल बनाए जाने की अहर्ता रखने की बात कही गई थी परंतु चुनाव में यह मुद्दा मीडिया की सुर्खियां बनती है। परंतु, दशकों बाद बरबीघा के अनुमंडल बनने की उम्मीद कहीं दिखाई नहीं देती।
बगैर शिक्षकों के ही कॉलेज में हो रही पढ़ाई : श्रीकृष्ण रामरूची कॉलेज में बगैर शिक्षकों के ही पढ़ाई हो रही है। विज्ञान के विषय में शिक्षकों की भारी कमी है। बावजूद इसके विद्यार्थियों का नामांकन हो रहा है। अब परीक्षा देकर विद्यार्थी पास भी कर रहे हैं। यह समस्या दो दशकों से है। कॉलेज में 3100 विद्यार्थी विज्ञान, वाणिज्य और कला विषय में पढ़ाई करते हैं, जिनको पढ़ाने के लिए मात्र 10 प्रोफेसर हैं, जिनमें हिदी से एक, वाणिज्य से एक, अर्थशास्त्र से दो, राजनीतिक विज्ञान से दो, पाली से एक, वनस्पति विज्ञान से एक, जंतु विज्ञान से एक, रसायन विज्ञान से एक शिक्षक हैं। गणित और भौतिक में एक भी शिक्षक नहीं है।

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