सुध ही नहीं :: अन्नदाता बनते मतदाता नहीं कोई भाग्यविधाता

-सिचाई, खाद, बीज और समय से फसल की खरीद नहीं होने से किसान रहते परेशान

-मौसम की मार से किसानी बनी जंजाल, घाटे का सौदा बनी खेती से विमुख हो रहे किसान
जागरण संवाददाता, सुपौल : कभी अन्नदाता की उपाधि से नवाजे जानेवाले किसान अब मतदाता बनकर खड़े हैं। सिचाई, खाद, बीज और समय से फसल की खरीद नहीं होने से ये अन्नदाता परेशान रहते हैं। मौसम की मार से किसानी जंजाल बनती जा रही है और घाटे का सौदा बनी खेती से किसान विमुख हो रहे हैं। किसानों की माने तो भले ही वे अन्नदाता हों लेकिन उनका कोई भाग्यविधाता नहीं बनता। चुनाव में तो उनकी सुध ली जाती है इसके बाद तो इनकी सुध ही नहीं रहती।
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जिले में किसानों की तादाद सबसे अधिक है। यहां 80 फीसद से अधिक लोग खेती या इससे जुड़े अन्य कार्य कर अपनी आजीविका चलाते हैं। लिहाजा मतदाता की हैसियत से भी यह सबसे बड़ा वर्ग है। इनकी व्यथा ताउम्र बरकरार रहती है। कहा भी गया है कि किसान गरीबी में जन्म लेते हैं, खेती कर जीते हैं और कर्ज में मर जाते हैं। किसानों की इतनी बड़ी तादाद रहने और अपनी मेहनत से फसल उगाने वाले किसानों के लिए खेती की समुचित व्यवस्था आज भी सपने जैसा है। ना यहां कृषि आधारित उद्योग लग सके और ना ही किसानों की फसल समय से खरीदी जा सकी। आलम यह है कि जब किसान अपनी फसल खुले बाजार में बेच लेते हैं तो सरकारी स्तर से खरीद शुरू होती है। इस साल गेहूं की सरकारी खरीद का लक्ष्य अबतक पूरा नहीं हो सका है। कभी पाट की खेती यहां की मुख्य नकदी फसल होती थी जो अब नहीं के बराबर हो रही है। कुछ किसान सब्जी और औषधीय खेती जरूर कर रहे हैं लेकिन उनकी संख्या काफी कम है। इधर किसानों ने धान की फसल लगाई जिसे बाढ़ और बारिश ने बुरी तरह तबाह कर दिया। मरौना के किसान प्रमोद यादव बताते हैं कि तीन-तीन बार धान के पौधे गल गए। किसी तरह जो फसल बची उसे फिर से तिलयुगा नदी के उफान ने प्रभावित किया। अब जो उत्पादन होगा वह भगवान भरोसे है। मुआवजे के लिए कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही है। अभी सब चुनाव में व्यस्त हैं।
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