ठौर की आस में बड़हरा विधानसभा के कई परिवार

आरा। लगभग 45 साल पहले के इतिहास को याद करने पर बड़हरा प्रखंड क्षेत्र की भौगोलिक बनावट में आज कई परिवर्तन दिखते हैं। कई गांवों के निशान तक मिट गए। वहीं वैसे गांव भी हैं जो आईने की तरह टुकडे़- टुकड़े होकर भी हर टुकड़े में अपनी वही छवि (पुरानी पहचान) देखते हैं।

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कटाव की है लंबी त्रासदी:
गंगा कटाव की लंबी त्रासदी हर वर्ष बाढ़ की विभीषिका, फिर बाढ़ से रक्षा हेतु बने अधूरे बांध के बेकार बनने का खामियाजा उपर से यदा-कदा सूखा जैसे प्राकृतिक प्रकोप का शिकार बन दर्जनों गांवों के लोग शायद अब आश्वस्त हो गये हैं। शायद कोई सरकार इनकी समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं निकाल सकती है।
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कई पंचायत के लोग होते हैं प्रभावित:
वर्ष 1969 के लगभग प्रारंभ हुए गंगा कटाव से एक-एक कर सोहरा, त्रिभुआनी, मझौली, हेतमपुर, खवासपुर, महुली घाट, पदमिनिया, केवटिया, नूरपुर, ज्ञानपुर, सेमरिया, नथमलपुर, सात गांवों वाला नेकनाम टोला पंचायत तबाह होते रहा है।
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कई गांव का मिट चुका अस्तित्व:
दसुचक, गोरा के डेरा, इंग्लिश चैनछपरा जैसे कई गांवों का अस्तित्व मिट गया। एकवना बहुत पहले की विस्थापित होकर करीब दो किलोमीटर दक्षिण स्वत: पुनर्वासित हुआ। कटाव में कई गांवों के बस्ती व बधार दोनों तथा कुछ गांवों के या तो बस्ती या सिर्फ बधार उजड़े। इसी प्रकार सोन नद के कटाव से सेमरा, बिन्दगांवा, फूंहा, भातुचकिया आदि कट कर जहां-तहां बसे।
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बांध समेत जहां तहां लिए हैं शरण :
कटाव से प्रभावित तकरीबन 50 हजार परिवारों में से सैंकड़ों परिवार आज तक उबर नहीं सके। सोहरा, त्रिभुआनी, हेतमपुर व मझौली गांवों के सैंकड़ों परिवार बांध पर लगे फूस पलानी में जैसे तैसे जीवन यापन कर रहे हैं।
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