गोल-मोल वादा हे, पनसुखल इरादा हे, नयका-पुरनका साथ, देख के हदस जाहि, हर बेरी फंस जाहि

बिहारशरीफ। विश्व मगही परिषद के सातवें अंतरराष्ट्रीय मगही चौपाल में वर्चुअल मोड में 'मगही कवि सम्मेलन' आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता मगध विश्वविद्यालय के मगही विभाग के अध्यक्ष प्रो. भरत सिंह ने की। नेउतल कवियों का स्वागत पत्रकार डॉ विपिन कुमार ने किया। कार्यक्रम में नालंदा के कवि उमेश प्रसाद उमेश, दिल्ली से डॉ सत्येंद्र सत्यार्थी, जमुई से डॉ नूतन सिंह, जहानाबाद से सुनैना कुमारी, गया से टोला-टाटी के संपादक कवि सुमंत जी, गोड्डा से कवि विनय विनम्र ने मगही कविताओं का शानदार कव्यपाठ किया। कार्यक्रम का संचालन हिदी एवं मगही के युवा कवि संजीव कुमार मुकेश ने किया। उन्होंने कहा कि मगही सब भाषा के मूल हे। 'सा मागधी मूल भाषा' की स्थापना के बाद भी अपने घर में उपेक्षित है। ऐसे में हम दूसरों से उसके सम्मान की बात कैसे सोच सकते हैं। हमें गर्व के साथ मगही को संवाद की भाषा बनाए रखने की जरूरत है। इसकी शुरुआत घर से करें। अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन संस्था के महासचिव प्रो नागेंद्र नारायण ने किया। इस अवसर पर प्रदेश अध्यक्ष कमलेश शर्मा भी उपस्थित थे।

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कविता के जरिए राजनीतिक गठबंधन व भ्रष्टाचार पर चोट
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मुकेश ने आज बिहार के राजनैतिक गठबंधन पर चुटकी लेते हुए अपनी व्यंग्य रचना Xह्नह्वश्रह्ल;गोल मोल वादा हे, पनसुखल इरादा हे, नयका-पुरनका साथ, देख के हदस जाहि.हर बेरी फंस जाहि का सस्वर पाठ किया। कवि उमेश प्रसाद उमेश ने अपनी कविता से शासन तंत्र में भ्रष्टाचार को आईना दिखाया। उन्होंने सुनाया 'हमरा की टुक-टुक ताको हा, मुखिया, लीडर, डीलर बन के सब के खुद्दी फको हा.. हुंह. हमरा की टुक-टुक ताको हा'। पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 'ये साजन बन जा तू एक माली, हमें मालिनियां बनबो ना' सुनाया।
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वर्चुअल मगही कवि सम्मेलन में मगही भाषा की उपेक्षा का छलका दर्द
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मगही को आठवीं अनुसूची में अभी तक शामिल न होने के दर्द को शब्दों में एक मुक्तक के माध्यम से व्यक्त करते हुए और मगध क्षेत्र के नेताओं से गुहार लगाते हुए कवि डॉ सत्येंद्र सत्यार्थी ने ये पंक्तियां सुनाई। करोड़ों लोग के अरमान, पावन आस हे मगही,
अपन पूर्वज के थाती-ज्ञान के विश्वास हे मगही।
कमर कस लीं कि मगही संविधान में सही जगह पाए,
अनगिनत लोग के सपना के तो आकास हे मगही।।
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गोड्डा के हिदी काव्य मंचों के प्रसिद्ध कवि विनय विनम्र ने मातृभाषा को अपनाने को प्रेरित करती पंकियां सुनाई 'कब तलक वक्त के रफ्तार के देखिअई तमाशा हम, कब तलक ई अभागा मन के झुठहुं दीअई दिलासा हम, पार करके भी पड़ल ऐ भइया आग के दरिया, न छोड़ले ही न छोड़बै ई आपन मातृभाषा हम।
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जहानाबाद की स्वीप आईकॉन और प्रसिद्ध लोक गायिका सुनैना कुमारी ने महिला उत्पीड़न के दर्द को शब्दों में पिरोया।
Xह्नह्वश्रह्ल;कइसन समाज के विचरवा गे माई
धक-धक करेला करेजवा गे माई।
कारी अंधि छाया पिछा चलल आवे
कोई खीचे बांह कोई अचरवा हटावे 
नारी के मान तार तरवा गे माई 
धक -धक करेला करेजवा गे माई ।Xह्नह्वश्रह्ल;
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जमुई की कवयित्री डॉ नूतन सिंह ने मगही की चिता को इस प्रकार सुनाया:
Xह्नह्वश्रह्ल;कब ले जोगा के रखबा इनका घरे तार के दोना में,
मगही हय फयलल भैया दुनिया के कोना-कोना में।
मगही के इतिहास खोल के एक बार दोहराहो त,
चन्द्रगुप्त,चाणक्य, अशोक, गौतम से भी पाछे जाहो त,
सतयुग, त्रेता,द्वापर के सब दिन इ हला सिरहौना में।
मगही हय फयलल भैया दुनिया के कोना कोना में।Xह्नह्वश्रह्ल;
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