पूर्णिया विधानसभा में कांग्रेस अब भी अपनी जमीन की कर रही है तलाश

पूर्णिया। पूर्णिया का शहरी विधानसभा कभी कांग्रेस और उसके बाद सीपीएम का गढ़ था लेकिन 2000 के बाद से अबतक यह सीट भाजपा के पास है। 1951 से 1977 तक कांग्रेस यहां पर अजेय रही। 1980 में यह सीट कांग्रेस पार्टी के पास से सीपीएम के पास पहुंची और उसके बाद से ही अबतक पार्टी अपनी जमीन तलाश रही है। कांग्रेस से कमलनाथ नारायण सिन्हा 1951, 1957, 1962, 1967, 1969, 1972 के विधानसभा चुनाव में अपराजेय रहे और इस विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते रहे। 1977 में कांग्रेस के ही देवनाथ राय कांग्रेस के उम्मीदवार बने और उन्होंने जीत दर्ज की थी। सीपीएम के अजीत सरकार ने पहली बार पासा पलटा था और हाथ को जबरदस्त शिकस्त दी थी। 1980 में सीपीएम के अजीत चंद सरकार ने कांग्रेस के कद्दावर नेता कमलदेव नारायण सिन्हा जो पिछले छह चुनाव तक अपराजित थे उनको परास्त करने में सफलता हासिल की थी। उसके बाद तो फिर अजीत सरकार ने 1980, 85, 90,95 विधानसभा चुनावों में लगातार जीत दर्ज करते रहे। उनकी हत्या के बाद 1998 के उपचुनाव में उनकी पत्नी माधवी सरकार विधायक बनी लेकिन उसके बाद 2000 में भाजपा के राज किशोर केसरी ने इस सीट से जीत हासिल कर विधायक बने। यह वही समय था जब राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के उभार का असर इस शहरी विधानसभा क्षेत्र में दिखने लगा था। राज किशोर केसरी ने भी 2000, 2005, 2005, 2010 में विधायक बने। उनकी भी हत्या के बाद 2011 के उप चुनाव में उनकी पत्नी किरण देवी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व की। 2015 में विजय कुमार खेमका को भाजपा ने टिकट दिया और अभी वही इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

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उन्होंने कांग्रेस के इन्दू सिन्हा को हराया था। कांग्रेस अधिकांश चुनाव में दूसरे नंबर रहती है। सदर विधानसभा में अधिकांश वोटर शहरी हैं। यहां की समस्या भी अन्य विधानसभा की तुलना में अलग है। अधिकांश चुनाव में यहां पर आमने -सामने की टक्कर होती रही है और कांग्रेस के उम्मीदवार एक अहम किरदार रहे हैं इसलिए इस बार भी इस क्षेत्र में कांटे की टक्कर से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस सीट पर 2020 में भी आमने-सामने की टक्कर होने के आसार हैं। यहां पर आखिरी चरण में 7 नवंबर को मतदान है। अबतक किसी पार्टी ने अपने उम्मीदवार की औपचारिक घोषणा नहीं की है। भाजपा ने अगर उम्मीदवार नहीं बदला तो विजय खेमका ही पार्टी की तरफ से मैदान में होंगे। इधर महागठबंधन की तरफ से कांग्रेस के खाते में यह सीट गई है। कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार की घोषणा के बाद ही असली जंग शुरु होगी। दरअसल भाजपा इस सीट से चुनाव लड़ रही है इसलिए माना जा रहा है लोजपा अपना उम्मीदवार शायद ना दे। ऐसे में आमने-सामने के ही मुकाबला होने के अधिक आसार हैं। जिसमें एक तरफ भाजपा और जदयू और दूसरी तरफ राजद और कांग्रेस गठजोड़ वाला महागठबंधन होगा। किसी पार्टी से बागी उम्मीदवार अगर मैदान में उतरते हैं तो मामला त्रिकोणीय और चुष्कोणीय होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। टिकट की घोषणा नहीं होने के कारण अभी चुनावी रंग इस शहरी क्षेत्र में बन नहीं पाया है। शहरी मिजाज के कारण लोग यत्र-तत्र अभी चर्चा करने से भी परहेज कर रहे हैं। कोरोना महामारी भी लोगों के चुनावी चर्चा में बाधा बनी हुई है। मतदाताओं को एक जगह इकट्टा होने का मौका नहीं मिल रहा है।
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