एसएनसीयू वार्ड से डिस्चार्ज बच्चों का 42 दिनों तक होगा फॉलोअप

पूर्णिया। शहर में होम बेस्ड न्यू बॉर्न केयर कार्यक्रम का संचालन किया जा रहा है। इसका मकसद जिले में शिशु म़ृत्यु दर को कम करना है। अभी पूर्णिया का शिशु मृत्यु दर 53 है। सदर अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड से डिस्चार्ज बच्चों का 42 दिनों तक फॉलोअप किया जाएगा। न्यू बॉर्न केयर यूनिट एसएनसीयू से भी डिस्चार्ज होने वाले बच्चों की डेढ़ माह तक तक निगरानी की जाएगी। क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता की मदद से ऐसे बच्चों को निगरानी होगी।

सिविल सर्जन डॉ. उमेश शर्मा ने कहा कि यह कार्यक्रम जिले में पहले से संचालित किया जा रहा है। अब इसको विस्तार दिया गया है और एसएनसीयू के डिस्चार्ज बच्चों का फॉलोअप करने का निर्णय लिया गया है। नवजात व शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से जन्म के 42 दिनों की अवधि में आशा छह से सात बार गृह भ्रमण करेंगी। ताकि खतरे के लक्षण वाले नवजात की पहचान कर समय पर उनका उपचार कराया जा सके। एसएनसीयू से डिस्चार्ज का नवजात का 24 घंटे के अंदर पहला भ्रमण होगा। तीसरे, सातवें, पांचवें, छठे भ्रमण के लिए 14वें, 21वें, 28वें और 42वें दिन फॉलोअप होगा। किसी भी तरह की समस्या होने पर स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र और आवश्यकता हुई सदर अस्पताल लाकर इलाज होगा। इसके लिए पीएचसी के एएनएम को भी जिम्मेदारी दी गई है। इसके अलावा डिस्चार्ज शिशु के पहले महीना, तीसरे महीना और एक वर्ष पर ओपीडी में फैसिलिटी फॉलोअप किया जाएगा। भ्रमण पत्र में सभी तिथि अंकित होगी। आशा कार्यकर्ता इस संबंध में माता-पिता को भी जानकारी देंगे। गृह भ्रमण का आशा को चार सौ रुपये मिलेगा।
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आशा को 50 रुपये प्रति भ्रमण की दर से कुल चार सौ रुपये मिलेंगे। कार्ड में फॉलोअप तिथियां लिखे होंगें। इसके तहत सभी प्रखंड स्वास्थ्य प्रबंधक हर महीने होम बेस्ड न्यू बॉर्न केयर के तहत निगरानी करेंगे। अधिक से अधिक बच्चों की देखभाल के लिए यह आशा को प्रेरित किया जाएगा। आशा अपने कार्यक्षेत्र में नवजात शिशुओं की देखभाल सुनिश्चित करेंगे। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सुभाष कुमार का कहना है कि कोई भी नवजात शिशु दो किलो से कम है तो उसको अपने नजदीकी सामुदायिक या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर अवश्य ले जाना चाहिए। पीएचसी के प्रभारी चिकित्सक को व्यवस्था देखने की जिम्मेदारी होगी और आवश्यकता होने पर एसएनसीयू के लिए सदर अस्पताल रेफर किया जाएगा। आशा को इस संबंध में प्रशिक्षण दिया गया है। खतरे को जानकर तुरंत शिशु को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र लेकर जाएं। बच्चों में समय से नहीं लक्षण पहचान पाने और तुरंत चिकित्सकीय उपचार मुहैया नहीं होने के कारण मौत हो जाती है। चिकित्सक के मुताबिक नियमित निगरानी रखकर शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है। दरअसल शुरूआती छह माह बच्चों के लिए काफी अहम होता है उसमें डेढ़ माह की अवधि को अत्यंत संवेदनशील मानी गयी है।
--: लक्षण को कैसे पहचाने
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