एक समय था जब सभी की जुबान पर था कभी चचा तो कभी भतीजा का जुमला

बिहारशरीफ। एक समय था जब तत्कालीन चंडी विधानसभा क्षेत्र में चुनाव जीतने और हारने को लेकर कभी चाचा तो कभी भतीजा का जुमला हर किसी की जुबान पर चढ़ गया था। बहुत लोग इस जुमले का भी इस्तेमाल करते थे 'कभी इस पार तो कभी उस पार।'

दरअसल, वर्ष 1983 में विधायक डॉ. रामराज सिंह की आकस्मिक निधन हो गया। पिता की मौत के बाद उनकी विरासत संभालने और सहानुभूति वोट बटोर कर विधानसभा उप-चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए अपने पिता के निकटम प्रतिद्वंद्वी हरिनारायण सिंह के मुकाबले चुनाव में उतरे। अनिल सिंह कांग्रेस पार्टी का उम्मीदवार थे। जबकि हरिनारायण सिंह जनता पार्टी के टिकट पर किस्मत आजमा रहे थे। इस चुनाव में अनिल सिंह को पिता के सहानुभूति वोट नहीं मिला और वे हार गए। चूंकि हरिनारायण सिंह का गांव महमदपुर और अनिल सिंह का गांव बोधि बिगहा आजू-बाजू में स्थित है। हरिनारायण सिंह, डॉ. रामराज सिंह के समकक्ष थे। दोनों के एक ही जाति के होने के कारण डॉ. रामराज सिंह के पुत्र अनिल सिंह का चाचा का रिश्ता हरिनारायण सिंह से लोगों ने जोड़ दिया और चर्चा चल पड़ी चाचा से भतीजा हार गए।
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वर्ष 1985 में लोक दल के टिकट पर हरिनारायण सिंह चुनाव लड़े। इनके मुकाबले अनिल सिंह (भतीजा) कांग्रेस के टिकट पर आए और चुनाव जीत गए। वर्ष 1990 में जनता दल के टिकट पर हरिनारायण सिंह (चाचा)ने जीत दर्ज की। मु़काबले में अनिल सिंह ही थे। साल 1995 में जनता दल से अलग होकर बनी समता पार्टी के उम्मीदवार अनिल सिंह जीते और हरिनारायण जनतादल के टिकट पर चुनाव हार गए। फिर वर्ष 2000 में हरिनारायण सिंह जदयू के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते। फिर हरिनारायण सिंह लगातार जीतते रहे। इस तरह कभी चाचा तो कभी भतीजा का जुमला लोगों की जबान से उतर गया।
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