चुनाव डेस्क: जातीय समीकरण बनता है रानीगंज में जीत व प्रत्याशी का आधार

- अनुसूचित जाती वोटरों पर रहती है सभी की निगाहें, मुस्लिम वोटरों की भूमिका भी अहम

- 1962 के बाद रानीगंज विधान सभा हुआ था सुरक्षित सीट
- बड़ी पार्टियां मुसहर जाती के कंडिडेट पर लगाती है दांव
अफसर अली, अररिया : अररिया जिले के सुरक्षित सीट पर हमेशा से जातीय समीकरण हावी रहा है। अनुसूचित जाती की वोट निर्णायक की भूमिका में रहती है। जिसके तरफ अनुसूचित जाती का एक मुश्त वोट मिले उसकी जीत तय मानी जाती है। इस लिए सभी कंडिडेट अनुसूचित जाति के वोट को लुभाने का भरपूर प्रयास करते हैं। हालांकि यहां माई समीकरण अर्थात यादव-मुस्लिम वोटरों की भी किरदार कम नहीं है। यदि माई समीकरण कामयाब रही तो कंडिडेट की जीत का प्रतिशत बढ़ जाता है। अबतक के चुनाव को गौर करें तो जब जब माई समीकरण कामयाब हुई है तो आरजेडी की जीत हुई है। समीकरण में टूट होने पर अनुसूचित जाती को अपने पाले में करने पर भाजपा की जीत हुई है। यहां से कांग्रेस व निर्दलीय उम्मीदवार भी जीत का मजा चख चुके हैं।
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अनुसूचित जाति के एक लाख से अधिक वोटर:
जानकारों की मानें तो यहां सबसे अधिक अनुसूचित जाती के एक लाख आठ हजार आठ सौ 96 वोटर हैं। इसमें सबसे अधिक मुसहर, पासवान व अन्य दिगर अनुसूचित जाती के हैं। इस कारण पिछले कुछ चुनाव से अधिकांश बड़ी पार्टियां मुसहर जाती के कंडिडेट पर अपना दावं लगाती है। पिछले चार विधान सभा चुनाव में इस जाती के कंडिडेट की जीत हुई है। उसके बाद मुस्लिम व यादव वोटरों की संख्या है। वर्तमान में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 50 हजार और यादव वोटरों की संख्या 35 हजार के करीब है। यदि दोनों को जोड़ दिया जाए तो अनुसूचित जाती के वोटरों की संख्या के बाद इसी का नंबर आता है। हालांकि अतिपिछड़़ा जाती की भूमिका कम नहीं है। अति पिछड़ा जाती के वोटर 65 हजार है। इसके बाद अन्य जातियों की वोटरों की संख्या है।
महागठबंधन के बल पर हुई थी जदयू की जीत:
वर्ष 2015 के विधान सभा में जदयू प्रत्याशी अच्छमित ऋषिदेव ने जीत का परचम लहराया था। हालांकि उस समय जीत का समीकरण कुछ अलग था। जदयू- आरजेडी से मिलकर चुनाव लड़ी थी। राजनीतिक विशलेषकों का मानना है कि पिछले चुनाव में अनुसूचित जाती के कंडिडेट रहने और माई समीकरण भी कामयाब रहा था। दूसरे स्थान पर बीजेपी रही थी। उससे पहले तीन विधान सभा चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी ने जीत दर्ज किया था।
कंडिडेट की हुई घोषणा :
इस बार जदूयू और राजद ने अपना कंडिडेट के नामों की घोषणा कर दी है। जदयू की ओर से सिटिग कंडिडेट अचमित ऋषिदेव चुनाव मैदान में हैं। वहीं आरजेडी ने नियोजित शिक्षक अविनाश मंगलम उर्फ मंगल ऋषिदेव पर दांव लगाया है। दोनों एक ही जाती के हैं। माना जा रहा है कि इस बार स्थनीय मुद्दा भी हावी है। हालांकि स्थानीय पालिटिक्स में जाप व लोजपा का भी अपना मुकाम है। दोनों पार्टी कंडेडेट के नामों की घोषणा अबतक नहीं की है। ऐसे में रानीगंज विधान सभा चुनाव दिलचस्प होगा। किस के पाले में ऊंच बैठती है जो समय के गर्भ में है। परंतु इतना जरूर है कि रानीगंज विधान सभा सीट निकलना इसबार जदयू के लिए चुनौती भरा है। रानीगंज विधान सभा में जातीय समीकरण :
1. अतिपिछड़ा - 65,000
2. यादव - 35,000
3. मुस्लिम - 50,000
4. सवर्ण - 16,000
5. दलित - 1,08,896
6. कोईरी - 7,000
7. आदिवासी - 15,000
8. वैश्य - 14,000
कुल - 3,10,896 कब किसकी झोली में जीत:
वर्ष - विनर - पार्टी वोट - रनर - पार्टी - वोट की संख्या
2015- अचमित- जदयू- 77717, रामजी दास ऋषिदेव- बीजेपी- 62787
2010- परमानंद ऋषिदेव- 65111, शांति देवी - आरजेडी - 41458
2005- रामजी दास ऋषिदवे- 34796, शांतिदेवी- आरजेडी- 30690
2005- परमानंद ऋषिदेव- बीजेपी- 31468, अशोक पासवान-एलजेपी-24180
2000 यमुना प्रसाद राम -आरजेडी- 52035, रामजीदास ऋषिदेव- बीजेपी- 30365
1995- शांतिदेवी - जनता दल- 37371, यमुना प्रसाद राम- आइएनसी- 26132
1990-शांति देवी - जनता दल- 36950, यमुना प्रसाद राम- आईएनसी- 33174
1985- यमुना प्रसाद राम, आईएनसी- 54758, बुंदेल पासवान- जेएनपी 8760
1980 -यमुना प्रसाद राम - आईएनसी (आई) - 24070, सुकदेव पासवान- जेएनपी- 16248
1977- अधिकलाल पासवान - जेएनपी- 22345, बुंदेल पासवान- आईएनसी 14955
1972- बुंदेल पासवान- निर्दलीय- 28814, कुमार लाल बैठा- आईएनसी 13609
1969- डूमरलाल बैठा- आईएनसी- 17109, बुंदेल पासवान- एलटीसी- 8803
1967- डुमरलाल बैठा- आईएनसी- 18274, बुंदेल पासवान पीएसपी-10473
1962 गणेश लाल वर्मा - निर्दलीय- 13575, राम नारायण मंडल-आईएनसी 13001
1957- रामनारायण मंडल- आईएनसी- 6371- गणेश लाल वर्मा-सीएनपीएसपीजेपी- 5066
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