चाणक्य नीती:- जानिए किस प्रकार की स्त्री और गुरुओं का तत्काल पाने जीवन से कर देना चाहिए त्याग, और क्या है इसका कारण?

धर्म के बारे में चाणक्य कहते हैं कि यदि किसी धर्म में दया का उपदेश नहीं दिया गया हो तो उस धर्म का त्याग कर देना ही बेहतर है। ऐसा इसलिए क्योंकि दया ही मानवता का मुख्य कर्तव्य है। प्रेम और दया के अभाव में कोई भी धर्म अहिंसा का ही उपदेश दे सकता है।

चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में धर्म, स्त्री और गुरुओं से संबंधित कुछ गूढ़ और आवश्यक बातें बताई है। इसमें चाणक्य बताते हैं कि मनुष्य को कैसे धर्म, कैसी स्त्री और किस प्रकार के गुरुओं का त्याग कर देना चाहिए। चाणक्य नीति के अनुसार आगे इसे जानते हैं।
इसलिए इंसान को ऐसे धर्म को छोड़ देना चाहिए। चाणक्य ने दूसरी बात गुरुओं के बारे में कही है। जिसमें उन्होंने कहा है कि किसी भी गुरु का कर्तव्य है कि वो अपने शिष्य को ज्ञान दें। अगर कोई गुरु विद्वान नहीं है तो उसे छोड़ देना चाहिए, क्योंकि अज्ञानी गुरु का कोई महत्व नहीं है।
तीसरी बात आचार्य चाणक्य ने पत्नी के बारे में बताई है। जिसमें आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यदि किसी व्यक्ति की पत्नी हमेशा गुस्से में रहती है। साथ ही पति से प्रेम नहीं करती है और पतिधर्म का पालन नहीं कर रही है या फिर हमेशा पति को दुख देती रहती है तो ऐसे में इंसान को पत्नी का त्याग कर देना चाहिए। इस संबंध में चाणक्य कहते हैं कि पति और पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का है। कई विपरीत परिस्थितियों में भी पति-पत्नी एक दूसरे का साथ निभाते हैं। अगर पत्नी सर्वगुण सम्पन्न है तो दोनों का जीवन सुखमय बना रहता है।

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