राजा भरथरी के विषय में और क्यों इतिहास में नाम हो गया?

राजा भर्तृहरि अनुमानत: ५५० ई० से पूर्व हुए भर्तृहरि उज्ज यनी के राजा थे। ये 'विक्रमादित्य' उपाधि धारण करने वाले चन्द्रगुप्त द्वितीय के बड़े भाई थे। इनके पिता का नाम चन्द्रसेन था। पहली पत्नी का नाम पिंगला था दूसरी एक रानी थी अंगसेना

इनकी एक कथा इस प्रकार है — राजा अपनी रानी से बहुत प्रेम करते थे जिसका नाम अंगसेना
था परंतु वह रानी राजा के एक सिपाही से तथा राजा के घोड़े के चरवाहे से भी संबंध थे राजा इन सब बातों से अनजान थे चंद्रचूड चरवाहा और सेनापति नर्तकी गणिका रूपलेख पर भी आशक्त थे परंतु गुरुगोरखनाथ जो की राजा को यह सब दिखाना चाहते थे उनहुने एक फल फिजवाया और कहा आप इस फल को राजा को देना कहना इसे खाकर आप हमेशा अमर हो जाओगे परंतु राजा तो अपनी रानी अंगसेना पर अशक्त थे राजा ने वो अमरफल रानी .  .अनंगसेना .  .को दिया।रानी ने वो अमरफल .  .चरवाहे चंद्रचूड़ .  .को दिया। चंद्रचूड़ ने वह फल लिया रूपलेखा को दे दिया वो अमरफल रूपलेखा को यह कहकर दे दिया की वो उसको खायेगी तो अमर हो जायेगी और उसका चिरकाल तक यौवन बना रहेगा।
वही फल रूपलेखा ने राजा को दे दिया की वो उसको खाएंगे तो अमर हो जायेंगे।वो खुद के जीवन से घृणा करती थी। उस फल को देख राजा क्रोधित हो गए।पूछने पर रूपलेखा ने चंद्रचूड़ का नाम बताया की उसीने उसको अमरफल दिया था।जब चंद्रचूड़ ने को राजा तलवार निकाल कर सच पूछा तो उसने रानी अनंगसेना के साथ अपने सम्बन्ध कबूले और सेनापति का भी भेद बताया।उस दिन अमावस्या की रात थी।राजा आगबबूला होकर नंगी तलवार लिए शोर करता हुआ अनगसेना के आवास की तरफ बढ़ चला।अनगसेना ने राजा के क्रोध से डरकर स आत्मदाह कर लिया चंद्रचूडह को देश निकाला दिया गया और सेनापति को मृत्युदंड दिया गया। अब राजा उदास रहते थे।पिंगला ने ही उनको आखेट के लिए भेजा था।फिर आखेट के समय एक सैनिक मारा गया तो उसकी पत्नी उसकी देह के साथ सती हो गई। राजा सोच में पड़ गया।एक नारी थी अनगसेना।एक नारी है रूपलेखा।और एक नारी है उस सैनिक की पत्नी। क्या है नारी? इस तरह
उनको वैराग्य हुआ और उनहुने बहुत सारा गूढ साहित्य लिखा परंतु पाठकों एक बात अपनी में जरूर रखूंगी राजा की बात है राजा ने नारी के बहुत रूप देखे एक उनकी पहली पत्नी पिंगला जो उनको बहुत प्रेम करती थी दूसरी नारी चित्रलेखा जो अपने राजा का हिट चाहती थी और अपने गणिका के कार्य से दुखी थी एक सिपाही की पत्नी जिसने पति के मरते ही प्राण त्याग दिए
इन सब बातों से लोग गलत अर्थ निकालते है की नारी पर लांछन जबकि यहाँ पर कितने रूप नारी के थे आशक्ति ही सब दुखों की है हीइ यह कथा थी राजा भरत हरी की —
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