पांचवें दिन श्रद्धालुओं ने की स्कंदमाता की पूजा-अर्चना

संवाद सहयोगी, वीरपुर (सुपौल): नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता को वात्सल्य की मूर्ति माना जाता है। मान्यता है कि इनकी पूजा करने से संतान योग की प्राप्ति होती है। हिदू मान्यताओं में स्कंदमाता को सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी कहते हैं, जो भक्त सच्चे मन और पूरे विधि-विधान से स्कंदमाता की पूजा करता है, उसे ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी स्कंदमाता ही हिमालय की पुत्री हैं और इस वजह से उन्हें पार्वती कहा जाता है। महादेव की पत्नी होने के कारण उन्हें माहेश्वरी भी कहते हैं। इनका वर्ण गौर है, इसलिए उन्हें देवी गौरी के नाम से भी जाना जाता है। मां कमल के पुष्प पर विराजित अभय मुद्रा में होती हैं। इसलिए उन्हें पद्मासना देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहा जाता है। भगवान स्कंद यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। स्कंदमाता प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं की सेनापति बनी थी। इस वजह से पुराणों में कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से वे स्कंद को गोद में पकड़ी हुई हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरदमुद्रा में है और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम गौर है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं और इनकी सवारी शेर है। वीरपुर परिक्षेत्र अन्तर्गत कई जगहों पर मां की पूजा अर्चना की जाती हैं, जिसमें मुख्य रूप से कोशी क्लब, हटिया चौक, कारगिल चौक, आई टाइप कॉलोनी, प्रोफेसर कॉलोनी, बसंतपुर, भीमनगर शिव मंदिर, भीमनगर पुराना चौक ,समदा, विशनपुर चौक, बलभद्रपुर, बनैलीपट्टी, परमानंदपुर सहित अन्य कई जगह प्रमुख हैं।


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