जाति, जमात और विकास के चक्रव्यूह में उलझी जनता

बक्सर : लोकतंत्र की मालिक जनता विधानसभा चुनाव के पहले चरण के अंतर्गत होने वाले मतदान के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है। कई दिनों बाद ही पहले चरण के अंतर्गत जिले में मतदान की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। लेकिन यहां की लोकतंत्र की मालिक जनता आज भी जाति, जमात और विकास के उलझन में उलझी हुई है। ऐसे में यहां की सीटों पर इस बार दिलचस्प मुकाबला हो गया है। यह बात और है कि उम्मीदवार मतदाताओं को रिझाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। वे मतदाताओं की कमजोरी तलाश रहे हैं और उस पर चोट करने का प्रयास कर रहे हैं। ताकि, उनको अपने पक्ष में कर सकें।


इस परिस्थिति में ग्रामीणों की पूछ काफी बढ़ गई है। जिनके पास अपने अलावा दो चार वोट अधिक है उनकी तो किस्मत ही खुल गई है। उनके यहां उम्मीदवारों के ऑफर पहुंच रहे हैं। इसके लिए बड़े-बड़े भोजों का आयोजन किया जा रहा है। हर जगह तो नहीं लेकिन कहीं-कहीं मालिक इसका भी मजा ले रही है। शायद अंदर ही अंदर उसने तय भी कर लिया हो कि किसको अपना मत देना है। बावजूद, मालिक की चुप्पी उम्मीदवारों को साल रही है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि उनकी जाति से जुड़ा व्यक्ति जमात को तरजीह दे रहा है या उसका एजेंडा दूसरे से मेल खा रहा है। बहरहाल, जो भी हो लेकिन मालिक का चुप रहना प्रत्याशियों के दिल की धड़कन बढ़ा रहा है। गौर करने लायक बात यह है कि इस दौर से हर उम्मीदवार गुजर रहा है। जीत का दावा तो सब कर रहे हैं लेकिन, मतदाताओं को समझ कोई नहीं पा रहा है।
मालिक की चुप्पी से माननीय बनने वालों की नींद हराम
बक्सर के चारों विधानसभा क्षेत्रों को ही लें तो यहां जाति और विकास दोनों मुद्दे हावी रहे हैं। अब इस बार किसका सिक्का चलता है यह तो 10 नवंबर को होने वाले मतगणना के बाद ही पता चलेगा। परन्तु, अभी की परिस्थिति में उम्मीदवार अपनी गोटी सेट करने के लिए हर जुगत कर रहे हैं। बहरहाल, यह बात तो तय है कि मालिक की चुप्पी से माननीय बनने वालों की नींद हराम है। वैसे दीगर बात यह है कि उम्मीदवार मालिक की चुप्पी को तोड़ने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं।
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मतदाताओं को रिझाने के लिए हो रही संबंधों की पेशगी
मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए जाति और जमात का हवाला तो दिया ही जा रहा है। बताया जाता है कि उम्मीदवार कहीं-कहीं मतदताओं को लुभाने के लिए नोटों की गड्डियां भी पेशगी में दे रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर संबंधों का हवाला दिया जा रहा है। यही नहीं, जो लोग दावा करते हैं कि गांव या घर के लोगों के वोट उनके हाथ में है वैसे लोगों के लिए भी इस तरह आफर आ रहे हैं। कई बार इस परिस्थिति से गुजर रहे लोगों को घर छोड़ना पड़ रहा है या बहाना बनाना पड़ रहा है। अब देखना है चुप रहने की मुद्रा में खड़ी मालिक किस-किस को जीत का सेहरा पहनाती है।
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