सुध ही नहीं : संसाधनों वाली धरती पर नहीं लगी रोजगार की फसल

उद्योग धंधे लगेंगे, लोगों को रोजगार मिलेगा तो इलाके में समृद्धि दिखेगी और आर्थिक उन्नति के द्वार खुलेंगे

जागरण संवाददाता, सुपौल: उद्योग धंधे लगेंगे, लोगों को रोजगार मिलेगा तो इलाके में समृद्धि दिखेगी और आर्थिक उन्नति के द्वार खुलेंगे। कितु संसाधनों वाली इस धरती पर रोजगार की फसल नहीं लग सकी। वक्त के साथ-साथ समय बदला, परिस्थितियां बदली, विकास के नए आयाम गढ़े गए। जिले में सड़कों का जाल बिछा बावजूद इसके उद्योग-धंधों को पंख नहीं लग सके। जबकि मानव संसाधन के मामले में कोसी का यह इलाका खुद गरीबी से जूझते हुए अन्य प्रदेशों को धनी बना रहा है।

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पानी, सड़क मार्ग और मानव संसाधन सबसे बड़ी पूंजी संसाधनों की बात करें तो जिले में कोसी व इसकी अन्य सहायक नदियों के कारण पानी की कमी नहीं है। भूजल का स्तर भी काफी ऊंचा है। सड़कों की बात करें तो सिल्चर (असम) को पोरबंदर (गुजरात) से जोड़ऩे वाली इस्ट वेस्ट कारीडोर एक्सप्रेस हाइवे 57, एनएच 106, एनएच 327ई जिले होकर गुजरती है। भारत माला परियोजना के तहत एनएच 527 ए प्रस्तावित है। एसएच की स्थिति भी चकाचक है। ग्रामीण सड़कें भी कमोवेश अच्छी स्थिति में हैं उन्हें भी मुख्य सड़क से जोड़ा गया है। फोरलेन के कारण अन्य राज्यों की भी दूरी सिमट कर रह गई है। किसी भी उद्योग के लिए सड़कें महत्वपूर्ण मानी जाती है और इस मामले में यह जिला धनी है। उद्योगों को चलाने के लिए मानव संसाधन तो यहां की सबसे बड़ी पूंजी है।
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अन्य राज्यों के उद्योगों को चलाते हैं यहां के हाथ
मानव संसाधन के मामले में तो यह जिला पूर्व से ही अग्रणी रहा है। कभी यहां के लोग मोरंग कमाने के लिए जाते थे आज दिल्ली, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों को जाते हैं। अगर यहां के लोग अन्य राज्यों को नहीं जाएं तो वहां के कई करोबार बंद हो सकते हैं। अन्य राज्यों में उद्योगों को यहां के हाथ ही चलाते हैं। इसका उदाहरण फिलहाल देखा जा रहा है। कोरोना को लेकर लॉकडाउन में अन्य प्रदेशों में काम कर रहे कामगारों को वहां से मालिकों ने घर को लौटा दिया। अब उन जगहों से बसें भेजकर उन्हें ले जाया जा रहा है। कृषि व मत्स्य पालन में है उद्योग-धंधों की संभावना इन तमाम संभावनाओं के बावजूद जिले में कोई उद्योग धंधा नहीं लगाया जा सका। यहां कृषि व मत्स्य पालन आधारित उद्योग की अपार संभावना है। आलू की खेती के लिए विख्यात त्रिवेणीगंज व्यवस्था का रोना रो रहा है तो सुपौल ब्रांड जूट ढूंढे नहीं मिल रहे। पहले त्रिवेणीगंज, छातापुर, राघोपुर आदि इलाके में पाट की खेती बहुतायत में होती थी जो अब सिमट कर रह गई है। अब यहां मक्का, केला आदि की खेती बड़े पैमाने पर होने लगी है। इसमें उद्योग की संभावना तलाशी जा सकती है। पानी की प्रचुरता के कारण मछली और मखाना उद्योग की संभावना है।
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