जातीय गोलबंदी व मुद्दों के चक्रव्यूह में सुरमा, रीगा में कांग्रेस तो बथनाहा में भाजपा की अग्निपरीक्षा

सीतामढ़ी। रीगा व बथनाहा सीटों पर पर भी जातीय गोलबंदी के साथ स्थानीय मुद्दे हावी हैं। स्थानीय समस्याओं के कारण मुद्दे तो खूब हैं पर असली लड़ाई आकर फंस गई है जातीय गोलबंदी और दलगत समीपकरणों के चक्रव्यूह में। सभी दलों ने टिकट बंटवारे में यहीं कार्ड खेला है। इस चक्कर में कई को बेटिकट कर दिया तो कई नए चेहरे पर दांव लगाया। उससे चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे योद्धाओं को भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है। यहीं कारण है कि कांटे की टक्कर के हालात उत्पन्न हैं। ----------------------------------

जातीय गोलबंदी व मतों के ध्रुवीकरण पर नजर रीगा से कुल 22 उम्मीदवार मैदान में हैं। सुरमाओं की लड़ाई में मुद्दे अपनी जगह हैं। बंदी के कगार पर पहुंच चुका चीनी मिल, गन्ना किसानों का बकाया भुगतान, बाढ़ और कटाव बड़ा मुद्दा है। बखरी घाट व रीगा मिल चौक से सटे उफरौलिया ढाब टोला के लोगों को पुल का इंतजार है। वहीं बैरगनिया, रीगा व सुप्पी को मिलाकर अनुमंडल व रीगा में डिग्री कॉलेज एवं स्टेडियम निर्माण नहीं कराने का मलाल भी लोगों को है। एनडीए से भाजपा के पूर्व विधायक मोतीलाल प्रसाद दूसरी बार खड़े हैं। वैसे लोग जो यहां से भाजपा के टिकट के दावेदार थे उनको नाउम्मीदी हाथ लगी तो स्वाभाविक है नाराजगी भी होगी। वहीं, महागठबंधन की ओर से यह सीट कांग्रेस के खाते में है। कांग्रेस ने दूसरी बार अमित कुमार टुन्ना पर भरोसा किया है। टुन्ना ही ले देकर जिले में एकमात्र कांग्रेस के विधायक रहे हैं। बसपा से मुन्नी बबन सिंह जातीय गोलबंदी एवं मतों के ध्रुवीकरण का फायदा मिलने की आस में हैं। भाजपा-कांग्रेस के बीच लड़ाई को बसपा त्रिकोणीय बनाने का प्रयास कर रही है।

----------------------------------------------- 24. बथनाहा (सुरक्षित) : नए चेहरों के बीच लड़ाई आमने-सामने
यह सुरक्षित सीट है। भाजपा के कई दिग्गज भी यहां से लडऩा चाहते थे, लेकिन प्रदेश नेतृत्व में अच्छी पकड़ होने से अनिल राम ही सफल हुए। सीटिग विधायक दिनकर राम अपनी उम्र का हवाला देकर पोते के लिए टिकट चाह रहे थे मगर भाजपा ने अनिल राम पर भरोसा जताया। जिससे उनमें नाराजगी स्वाभाविक है। यह भितरघात का संकेत है। वहीं, महागठबंधन की ओर से कांग्रेस के संजय राम मैदान में हैं। राजद की ओर से भी मजबूत दावेदारी पेश की गई थी। सीट शेयरिग में यह कांग्रेस के खाते में चली गई। इस वजह से राजद समर्थक नाराज होंगे। यहां रालोसपा से चंद्रिका पासवान भी किस्मत आजमा रहे हैं। तीनों नए चेहरे हैं। किन्हीं का सियासी ताल्लुक नहीं। असल लड़ाई एनडीए-महागठबंधन के बीच ही है। नए चेहरे चुनाव जीतने पर यहां के मुद्दे का समाधन करने की बात कह रहे हैं। सुपैना घाट पर पुल निर्माण की मांग दशकों से उठती रही है। बखरी पंचायत के पितांबर के नजदीक से गुजरने वाली सोरन नदी की धारा पर पुल तो डुमरी खुर्द से बसबिट्टा सड़क निर्माण व सहियारा को प्रखंड बनाने की मांग हो रही है।
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