मुजफ्फरपुर में कवि राजेंद्र ने रचनाकारों की कई पीढ़ियों को किया प्रेरित

मुजफ्फरपुर के जाने-माने कवि राजेंद्र प्रसाद सिंह की पहली कृति काव्य संग्रह के रूप में ‘भूमिका नाम से प्रकाशित हुई तो हिन्दी साहित्य-संसार ने उनका बढ़-चढ़कर स्वागत किया। उनकी कृति की जमकर चर्चा हुई‌। इस पुस्तक की भूमिका महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने लिखी। मुजफ्फरपुर में रहते हुए रचनाकारों की कई पीढ़ियों को उन्होंने न केवल प्रेरित बल्कि निर्मित भी किया। वे समकालीन और नई पीढ़ी के बीच बड़े ही लोकप्रिय थे। ये बातें शुक्रवार को शहर के साहित्यकारों ने नवगीत प्रवर्तक कवि राजेंद्र प्रसाद सिंह की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर याद करते हुए कहीं।

साहित्यकार डॉ. महेंद्र मधुकर कहते हैं कि अपने जीवनकाल में राजेंद्र प्रसाद सिंह गीत की नई जमीन पर लगातार मौलिकता के साथ सृजनरत रहे। उनकी रचनाएं हिन्दी साहित्य की धरोहर हैं। साहित्यकार और बेला के संपादक डॉ. संजय पंकज बताते हैं कि विलक्षण प्रतिभा के धनी राजेंद्र प्रसाद सिंह जमींदार कुल में पैदा होने के बावजूद सदा आमजन की तरह रहे और सबके दुख-सुख से जुड़ते रहे। ज्ञान संपन्न राजेन्द्र जी अगर एक ही विषय पर कई बार बोलते थे तो हर बार उनकी भाषा और चिंतन की दिशा भिन्न होती थीं, मगर सबमें वे प्रभावित करते थे। उनकी मृत्यु पर महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने दो दिनों तक उपवास रखा।
अभिभावक की तरह नए साहित्यकारों का करते थे मार्गदर्शन
कवि-कथाकार डॉ. रामेश्वर द्विवेदी कहते हैं कि राजेंद्र जी का सबसे दोस्ताना व्यवहार हुआ करता था। जब कभी भी किसी साहित्यिक समस्या में फंसते थे तो उनसे पूछते थे और वे बहुत ही सहजता से हमारे सवालों को हल करते थे। कवयित्री पूनम सिंह कहती हैं कि राजेन्द्र जी में बहुत सहजता और सरलता थी। अभिभावक की तरह हम सबका मार्गदर्शन करते थे। कवि और व्यंग्यकार डॉ. सुधांशु कुमार ने बताया कि राजेंद्र प्रसाद सिंह प्रक्रियावाद के प्रवर्तक थे। उन्होंने जब उत्तर छायावाद के अग्रणी कवि राम इकबाल सिंह राकेश के काव्य सौंदर्य पर मुझे बताया तो मैं आश्चर्यचकित रह गया। काव्य पाठ भी उनका बड़ा प्रभावशाली होता था।

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