Bihar Chunav Exit Polls 2020: बिहार में तीर भी और तुक्का भी साबित होते रहे हैं एग्जिट पोल के नतीजे

पटना, अरविंद शर्मा। Bihar Chunav Exit Polls 2020: हिंदी में एक शब्द तुक्का, जिसका शाब्दिक अर्थ है निष्फल बाण। लक्ष्य भेदने के बाद तुक्का ही तीर कहलाने लगता है। चुनावी राजनीति में एग्जिट पोल भी तुक्का ही साबित होता रहा है। बिहार के संदर्भ में देखें तो पिछले चुनाव ने इस शब्द के अर्थ को और मजबूत ही किया है। पांच-छह एजेंसियों ने अलग-अलग सर्वे किया। नमूने लिए। अनुमान लगाया। परिणाम भी बताया, पर जिस दिन वास्तविक नतीजे आए, सारे के सारे धड़ाम नजर आए।

फिर भी पिछले कई दशकों से देश के प्रत्येक चुनावों में तुक्का चलाया जाता रहा है, जिसने कई बार लक्ष्य भी भेदा है और कई बार तुक्का भी साबित हुआ है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है एग्जिट पोल की जरूरत, सर्वे के तरीके और सही-गलत परिणामों के बारे में जानना।
अब शुरू होगा एक्जिग पोल का दौर
तीन चरणों में चलने बिहार विधानसभा चुनाव की मतदान प्रक्रिया की शनिवार को पूर्णाहूति हो गई। तीन दिन बाद नतीजे आएंगे। फिर सरकार बनाने-बिगाडऩे का खेल होगा पर उससे पहले एग्जिट पोल की बारी है, जिसमें चाहे जिसे बढ़त दिला दिया जाए या जिसे घटा दिया जाए, लेकिन इतना सच है कि सारे अनुमान हवा में ही होंगे।
भारत में सबसे पहले एग्जिट पोल इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन ने कराया था। एजेंसी के प्रमुख एरिक डी कॉस्टा ने चुनावों के पैटर्न और मतदाताओं की पसंद को जानने-समझने के लिए देश का पहला एग्जिट पोल कराया था। चूंकि वोट गोपनीय तरीके से डाला जाता है। इससे पता नहीं चल पाता कि किस मुद्दे पर मतदाता किसी को पसंद या विरोध कर रहे हैं।
क्या है एग्जिट पोल
चुनाव के बाद हार-जीत का अंदाजा लगाने के लिए किए गए सर्वे को एग्जिट पोल कहते हैं। मतदाता अपने अधिकार का प्रयोग करके जब बूथों से बाहर निकलते हैं तो विभिन्न एजेंसियों के लोग उनसे उनकी राय पूछते हैं। सवाल सीधा होता है कि किसे वोट दिया। कई बार घुमा कर भी पूछा जाता है कि किस मुद्दे पर आपने वोट किया। मुद्दों के हिसाब से अनुमान लगा लिया जाता है। एक-एक विधानसभा सीट पर एजेंसियों के कई-कई लोग होते हैं, जो अलग-अलग नमूने लेते हैं। बाद में उन्हीं का विश्लेषण कर धारणा बनाई जाती है कि किस दल को कितने प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है। आखिरी चरण के मतदान खत्म होने के बाद इस अनुमान को सार्वजनिक किया जाता है।
कैसे होता एग्जिट पोल
राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार एग्जिट पोल का आसान फार्मूला बताते हैं। अभय के मुताबिक मतदान के दिन अलग-अलग बूथों पर एजेंसियों के लोग मौजूद रहते हैं। वोट देकर बाहर निकले मतदाता से पूछा जाता है कि किसे वोट दिया। और भी सवाल होते हैं। मतदाता सच भी बता सकते हैं और गलत भी। जो पढ़े-लिखे लोग होते हैं, वह खुद भी सामने आकर बताते हैं, मगर अनपढ़-अशिक्षित मतदाता से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती है। महिलाओं से जवाब लेना तो और भी मुश्किल होता है। सीएसडीएस के लिए काम कर चुके अभय कहते हैं कि हजारों नमूने लेकर आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है। फिर वोटिंग का अनुमान लगाया जाता है कि किस दल को कितने प्रतिशत लोगों ने वोट किया। एग्जिट पोल के नमूने एकत्र करने और उनका विश्लेषण करने की लंबी प्रक्रिया होती है।
मतदान के दौरान नहीं दिखाया जा सकता
एग्जिट पोल के आंकड़े हमेशा आखिरी दौर के मतदान खत्म होने के बाद ही सार्वजनिक किए जाते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि किसी दल की जीत-हार से मतदाता प्रभावित नहीं हो सकें। अपना मत वह किसी के प्रभाव में आए बिना ही डालें। जनप्रतिनिधित्व काननू-1951 की धारा 126ए मतदाताओं को अपने हिसाब से निर्णय करने का अधिकार देती है। इसके मुताबिक वोटिंग के दौरान किसी भी तरीके से मतदाताओं को प्रभावित करना असंवैधानिक है। इसलिए एग्जिट पोल के अनुमान को तभी सार्वजनिक किया जाता है जब मतदान की आखिरी प्रक्रिया खत्म हो जाती है।

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