‘आचार्य श्री भारतीय समृद्ध परंपरा व राजेंद्र वैश्विक दृष्टि

आज हिंदी नवगीत के प्रवर्तक और आचार्यश्री के प्रिय कवि राजेंद्र प्रसाद सिंह की भी पुण्यतिथि है। हमदोनों का स्मरण करते है। अगर आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री भारतीय समृद्ध परंपरा हैं तो राजेंद्र प्रसाद सिंह वैश्विक दृष्टि और नवीन चेतना थे। ये बातें शनिवार को बेला पत्रिका के तत्वावधान में आयोजित निराला निकेतन की महावाणी स्मरण गोष्ठी में विषय प्रवेश कराते हुए साहित्यकार डॉ. संजय पकंज ने कही। अध्यक्षता करते हुए डॉ. देवव्रत अकेला ने कहा कि मैं जब कभी भी निराला निकेतन आता हूं पवित्र हो जाता हूं। आचार्य जी के दर्शन करते हुए मुझे बराबर रचनात्मक प्रेरणा और ऊर्जा मिलती थी। गीतकार डॉ. विजय शंकर मिश्र ने कहा कि आचार्य का स्मरण करते हुए हम अपनी रचनात्मकता को धार देने का उपक्रम करते है। उन्होंने आचार्य के प्रिय गीत-'बहुत रहा मैं पास तुम्हारे इसलिए पहचान सके ना... की प्रस्तुति से वातावरण को जीवंत और संवेदित बना दिया। काव्यपाठ करते हुए जहां ललन कुमार ने सुनाया काश ऐसा मतदान न होता, होठों का व्यापार न होता तो चुनावी दृश्य उभर कर सामने आ गया। युवा कवि वीरेंद्र वीरेन ने गीत-जिंदगी क्या कहूं मौन या मुखर रहूं सुनाकर जिंदगी की कशमकश और परिभाषा स्पष्ट करने का रचनात्मक प्रयास सराहनीय रूप से किया। डॉ. विजय शंकर मिश्र, शोभा कांत मिश्र आदि ने भी अपनी कविताएं सुनाई। धन्यवाद ज्ञापन ब्रजभूषण शर्मा ने किया।

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