बाराबंकी-एसपी ने बदल दिया जीवन- कभी महिलाएं बनाती थीं शराब-अब दीये, मोमबत्ती बनाकर कर रही हैं घरों को रोशन

बाराबंकी, 08 नवम्बर- अगर मन में दृढ़ संकल्प और काम करने का जज्बा हो तो कोई ऐसा काम नहीं है जिसे किया नहीं जा सकता है, बाराबंकी के एक गांव में कभी शराब बनाकर बेचने वाली वाली महिलाएं अब मोमबत्ती एवं दीये बनाकर घरों को रोशन कर रही हैं।यही करके दिखाया है बाराबंकी जिले के पुलिस अधीक्षक डॉ अरविंद चतुर्वेदी ने जो महिलाएं कभी कच्ची शराब बनाकर अपना जीवन यापन करती थी । वह अब मोमबत्तियां और दीये बनाकर घरों को तो रोशन कर ही रही हैं और प्रतिदिन करीब कम से कम 600 रुपये भी कमा रही हैं। गांव भी वही है और महिलाएं भी वहीं हैं, हर घर के बाहर जहां पहले शराब की भट्टियां जलती थी, लेकिन अब इन भट्टियों पर कच्ची शराब नहीं बल्कि मोम को पिघला कर मोमबत्तियां बना रही हैं।सिर्फ एक सकारात्मक पहल से गांव के लोग अब न सिर्फ कच्ची शराब बनाने का काम छोड़ चुके हैं, बल्कि दीये और मोमबत्ती बना रहे हैं। बाराबंकी के रामनगर क्षेत्र में आने वाला चैनपुरवा गांव की महिलाओं का कहना है कि हमारे गांव में बाहर के आदमी कच्ची दारू लेने आते थे, कुछ दिन पहले एसपी साहब ने गांव में चौपाल लगाई थी और वहां हम सब को बुलवाया और पूछा था कि क्या आप सब लोग कच्ची शराब बनाने का काम करती हैं," हम लोगों ने सही-सही कहा कि हां हम शराब बनाते हैं साहब, कोई काम रोजगार नहीं है तो घर का खर्चा कैसे चले तो एसपी साहब ने हम लोगों को मोमबत्ती बनाने की सलाह दी और फिर धीरे-धीरे करके आज पूरे गांव की महिलाएं-बच्चे सब मोमबत्ती बना रहे हैं।,"पुलिस अधीक्षक की पहल पर चैनपुरवा गांव की ये महिलाएं अब काफी खुश हैं। महिलाओं का कहना है जब वह कच्ची शराब बनाती तो पुलिस के छापे का भनक लगते ही वह गांव से भाग जाती थी, लेकिन आज पुलिस को देख कर खुश हो जाती हैं।इसी गांव की ही वीरमति बताती हैं, "अक्सर हमारे यहां सुबह शाम शराबी आते थे और दारू पीकर गाली-गलौज करते थे। पुलिस को देख कर हम सब भाग जाते थे, खेतों में लेटे रहते थे ,लेकिन आज वही पुलिस जब गांव में आती हैं तो ऐसा लगता है जैसे कोई अपना आया है।,"चैनपुरवा गांव में पुलिस अधीक्षक डॉ0 अरविंद चतुर्वेदी ने करीब डेढ़ माह पहले चैनपुरवा गांव को कच्ची शराब मुक्त बनाने के साथ ही यहां की महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की पहल शुरू की थी। गांव की 25 महिलाओं को जोड़ कर पांच समूह बनाए।इसके बाद इन महिलाओं को बीवैक्स, मिट्टी के दीया, धागा जैसी सामग्री न/न सिर्फ उपलब्ध कराई, बल्कि दीपावली पर मोमबत्ती का अच्छा व्यापार देख 'कैंडल दीया' बनाने की ट्रेनिंग भी दी है। 'कैंडल दीया' तैयार कर रहीं इन महिलाओं को एक रुपये प्रति दीया कमाई भी कर पा रही हैं। गांव में सभी महिलाओं के दीयों का हिसाब-किताब रखने वाली सुधा बताती हैं, "हम सभी को दीया मोमबत्ती सब कुछ पहुंचाते हैं, अभी एक महिला दिन भर में करीब 600 मोमबत्तियां बना लेती है, एक मोमबत्ती पर एक रुपए के हिसाब से दिन भर में 600 रुपये का काम कर लेती है।जिला प्रशासन ने इन महिलाओं को अपना उत्पादन बेचने के लिए जिले में नगर पार्षद की दुकान का भी आवंटन की है, जिसमें यह अपना सामान बेच सकेगी।

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