सीमांचल में ओवैसी ने उड़ाई पतंग, महागठबंधन की कट गई डोर

- ओवैसी की किलेबंदी में बिखर गया महागठबंधन का गढ़

- किशनगंज लोकसभा के छह में से चार सीट पर एआइएमआइम को मिली जीत
अमितेष, जागरण संवाददाता, किशनगंज : अल्पसंख्यक बहुल सीमांचल में हैदराबादी बिरयानी भी खूब पकी और ओवैसी पतंग उड़ाकर महागठबंधन की डोर काट दी। महागठबंधन का मजबूत गढ़ कहा जाने वाले इस इलाके में ओवैसी न सिर्फ सेंधमारी की बल्कि पांच सीट पर कब्जा जमाने में सफल रहे बल्कि नई किस्म की राजनीति का आगाज कर अल्पसंख्यक मतदाताओं का असली रहनुमा साबित करने में हद तक सफल रहे। किशगनंज जिले के बहादुरगंज और कोचाधामन सीट पर बड़े अंतर से जीत हासिल हुई तो पूर्णिया के अमौर व बायसी के अलावा अररिया के जोकीहाट पर एआइएमआइएम को मिली जीत ने सबको हैरान कर दिया।
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दरअसल सीएए, एनआरसी और एनपीआर की धीमी आंच पर पूरे चुनाव के दौरान मतदाताओं को अपने पक्ष में ओवैसी भुनाते रहे। सीएए, एनआरसी और एनपीआर की आंच हैदराबादी बिरयानी परोसकर मतदाताओं को रिझाने में न सिर्फ कामयाब हुए बल्कि महागठबंधन को इसका भनक तक नहीं लगने दिया। वहीं राजद और कांग्रेस अल्पसंख्यक मतदाताओं को कोर वोटर मानकर निश्चित रहे। अंत में जब तेजस्वी यादव किशनगंज में एकसाथ तीन सभा कर वोटरों को साधने की कोशिश भी तो ठाकुरगंज छोड़कर अन्य सीट पर कोई खास सफल नहीं हो पाए। हालांकि राहुल गांधी की सभा का लाभ एक मात्र किशनगंज सीट पर जरूर मिला लेकिन बहादुरगंज जैसा मजबूत गढ़ नहीं बचा पाए।
दरअसल विगत पांच वर्षाें में अल्पसंख्यक मतदाताओं की नब्ज टटोल चुके ओवैसी महागठबंधन की कोर वोट में सेंधमारी करने में कामयाब रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव में किशनगंज लोकसभा सीट पर लगभग तीन लाख वोट लाकर एआइएमआइएम तीसरे स्थान पर रही थी। इस बीच नागरिकता संशोधन बिल पास होने के बाद सीमांचल में लगातार प्रोटेस्ट कर जनता के बीच असली रहनुमा बताने में कामयाब रहे। यही वजह रहा कि ओवैसी को जिन पांच सीटों पर जीत मिली उनमें से चार किशनगंज लोकसभा के अंतर्गत आता है। कोचाधामन, बहादुरगंज, अमौर व बायसी किशनगंज लोकसभा का हिस्सा है। पांचवा सीट अररिया का जोकीहाट है। इन पांच में से एक मात्र जदयू के कब्जे वाली कोचाधामन सीट है जबकि बाकी के चार सीट महागठबंधन का मजबूत गढ़ रहा है। बहादुरगंज से लगातार चार बार कांग्रेस जीतते आ रही थी तो बायसी और जोकीहाट राजद का गढ़ था। वहीं अमौर में कांग्रेस के कद्दावर अब्दल जलील मस्तान का सुरक्षित सीट माना जाता था।
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