मंडी के अभाव में किसानों को नहीं मिलता अनाज का उचित मूल्य

अररिया। विधानसभा की गिनती के बाद नए सरकार बनाने की तैयारी चल रही है। विधानसभा चुनाव में रोजगार अहम मुद्दा था। कहीं दस लाख सरकारी नौकरी की दवा किए जा रहे तो दूसरी तरफ 19 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने की बातें हो रही थी। इसी मुद्दे पर लोगों के बीच चर्चा भी खूब हुई थी। आखिर लोगों ने एक बार फिर से एनडीए गठबंधन पर भरोसा जताया। अररिया जिले के छह विधानसभा सीटों में चार एनडीए, एक महागठबंधन, एक एआइएमआइएम के प्रत्याशी की जीत हुई है। अब इन सभी के लिए जिले में बेरोजगारी दूर करना चुनौती होगी। जिले में एक भी उद्योग नहीं है। जहां सौ से पांच सौ लोगों को काम मिल सके। अनाज का एक भी मंडी नहीं है। यहां के किसानों को उपजे फसल पूर्णियां व दूसरे जिले के मंडियों में ले जाकर बेचना पड़ता है। जिससे किसानों को समय पर उचित कीमत नहीं मिल पाती है। -हर साल फसल को होता है नुकसान जिले में बाढ़ सबसे बड़ी समस्या है। यहां हर साल बाढ़ आती है और हजारों एकड़ में लगी फसलों को नष्ट कर जाती है। बाढ़ की समस्याओं को निदान कराने के लिए नवनिर्वाचित विधायकों के लिए बड़ी चुनौती होगी। नदी गठजोड़, महानंदा बेसिन योजना, जो सालों से लंबित है। उसपर ध्यान देने की जरूरत है। नदियों की साफ-सफाई, बांध का निर्माण होने से बाढ़ की समस्याओं से हदतक निपटा जा सकता है। नेपाल सीमा से आने वाली परमान, बकरा, नूना, कनकेई, फरयानी, कमताहा, कारीकोशी, विलंनिया धार, दुलारदेई, सौरा आदि नदियां मई से लेकर अगस्त माह तक तबाही मचाती है। एक साल में तीन तीन बार जिले में बाढ़ आती है। जिसमें लाखों लोग विस्थापित की जीवन जीने को विवश हो जाते हैं। सैकड़ों की जाने जाती है। पशु चारा के लिए तरस जाते। साल भर की सारी कमाई बाढ़ अपने साथ बहा ले जाती है। पलायन रोकने का प्रयास जिले की आबादी 40 लाख पार कर गई है। जनसंख्या विस्फोट के कारण बेरोजागरी बड़ी समस्या है। एक अनुमान के अनुसार जिले के दस लाख से अधिक लोग दूसरे राज्यों व विदेशों में रोजी रोटी के पलायन करते हैं। जिले में एक भी कल कारखाने नहीं है। किसानों का हाल भी खास्ता है। समय पर पूंजी नहीं रहने के कारण किसान समय से खेती नहीं कर पाते हैं। किसी तरह खेती करते हैं तो उपजे अनाज का सही मूल्य नहीं मिलता है। अपने अनाज को औने पौने दामों पर बेचना पड़ता है। - मक्का, धान व गेंहू की पैदावार होती है अधिक -नदियों से घीरे इस जिले में मक्का, अघनी धान, गेंहू की खेती अधिक होती है। नगदी फसल के रूप में किसान खेती करते हैं। जिससे किसानों को एक मुश्त नगद राशि मिलने की उम्मीद रहती है। यहां का मक्का, गेंहू, चावल आदि का डिमांड बंगाल सहित दूसरे राज्यों अधिक है। परंतु इसका सीधा लाभ किसानों को नहीं मिलता है। इससे बड़े व्यपारियों को अधिक लाभ होता है। जैसे ही यहां के किसान अपना फसल तैयार करते उस समय फसलों की कीमत बहुत कम रहती है। पिछड़ेपन को दूर करने होगी चुनौती अररिया कॉलेज के प्राचार्य डा. रऊफ अनवर कहते हैं कि यह क्षेत्र काफी पिछड़ा है। यहां के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए नवनिर्वाचित विधायकों के लिए बड़ी चुनौती होगी। रोजगार पैदा करने के लिए फैक्ट्री खुलवाने होंगे। हड़ियाबाड़ा गांव के समीप एक जूट फैक्ट्री वर्षों से बंद पड़ी है। जिसमें कभी हजारों मजदूरों को रोजगार मिलता था। ऐसे कई उद्योग खुलवाने होंगे। जिससे पलायन पर अंकुश लगेगा। किसानों की हालत में सुधार के लिए कई प्रयासों की जरूरत है। शिक्षा के स्तर में सुधार कराने के साथ साथ युवाओं को हुनरमंद बनाना होगा। हुनरमंद युवाओं के लिए रोजगार उपलब्ध कराना होगा। बाढ़ की समस्याओं से निजात पाने के लिए सभी जनप्रतनिधियों को एक जुट होकर कार्य करना होगा। ऐसे कई प्रयासों के बाद ही जिले के पिछड़ेपन को दूर होगी।

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