नहीं दिख रही सरकारी सुगबुगाहट, तैयार है धान

जागरण संवाददाता सुपौल: धान की फसल पक कर तैयार हो चुकी है। किसानों द्वारा धान की कटनी जोर शोर से की जा रही है। धान की अच्छी पैदावार देखकर किसान खुश नजर आ रहे हैं, लेकिन उनके चेहरे से यह खुशी तब गायब हो जाती है जब वह फसल का भाव सुनते हैं। धान का बाजार भाव सुनकर किसानों के होश उड़ने लगे हैं। इधर15 नवंबर बीतने को है परंतु अभी तक सरकारी खरीदारी की सुगबुगाहट भी शुरू नहीं हो पाई है। मजबूरन किसान अपनी जरूरतों को देख औने पौने दामों पर धान को बेच रहे हैं। किसानों का कहना है की भंडारण की व्यवस्था नहीं रहने तथा जरूरतों को देखते हुए उन्हें धान बेचने की मजबूरी बनी हुई है। पिपरा प्रखंड के किसान रामकृष्ण मेहता, मोहन मंडल, सुधीर कुमार आदि ने बताया कि वह करीब छह बीघा धान की कटनी करा चुके हैं। पैसे की जरूरत होने के कारण खलिहान से ही व्यापारी के हाथ लगभग 20 क्विटल धान को बेच दिया है। व्यापारी ने धान की कीमत। 11सौ रुपये प्रति क्विटल ही लगाया है। जबकि पिछले वर्ष ही सरकार द्वारा धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य को देखें तो 1868 रुपये प्रति क्विटल था। किसानों की मानें तो धान की लागत भी मौजूदा मूल्य से नहीं निकल पा रही है। ऐसे में यदि किसानों के फसल की उचित कीमत नहीं मिलती है तो इस साल भी किसानों की लागत पूंजी भी ऊपर नहीं हो पाएगी। कई किसानों ने बताया कि फसल पककर तैयार है लेकिन सरकारी क्रय की लेट लतीफ व्यवस्था को देख फसल काटने से हिम्मत जवाब दे जा रहा है। अभी बाजार का जो भाव है उस स्थिति में तो उन लोगों की पूंजी भी ऊपर नहीं हो पाएगी। जबकि आगामी फसल के लिए एक बड़ी पूंजी की आवश्यकता है जिसका सारा दारोमदार धान पर ही है । ऐसे में यदि सरकारी क्रय व्यवस्था जल्द शुरू नहीं हो पाती है तो फिर इस बार भी किसानों को कर्ज तले डूबने से कोई नहीं बचा पाएगा। हालांकि किसानों ने सरकारी क्रय व्यवस्था के प्रति भी अपनी खींज जताते हुए कहा कि सरकारी स्तर पर धान खरीद की रफ्तार हमेशा से सुस्त रही है। जब किसानों के खलिहान में फसल होती है तो उस समय सरकारी कर्मी व्यवस्था में ही लगे रहते हैं। जब किसान धान बेच दिए होते हैं तो फिर यह व्यवस्था शुरू होती है जिसके कारण छोटे और मझोले किस्म के किसानों को तो इसका लाभ मिल नहीं पाता है। कुछ बड़े किसानों से धान खरीदकर लक्ष्य को पूरा कर लिया जाता है। ऐसे में किसानों की आय दोगुनी हो पाएगी और उनके चेहरे पर खुशी आ पाएगी। फिलहाल इस बार भी संभव होता नहीं दिख रहा है ।

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भंडारण की है बड़ी समस्या दरअसल अधिकांश किसानों के पास फसल भंडारण की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है जिसके कारण किसान फसल तैयार होने के बाद ही खलिहान से धान को बेच देते हैं। ऐसे किसान सरकारी खरीद की आस में नहीं रह पाते हैं जिसके कारण किसानों को कम कीमत पर अपना उत्पादन बेचकर उन्हें घाटा उठाना उनकी मजबूरी बनी रहती है। अब जबकि 15 नवंबर का समय बीत चुका है बावजूद सरकार की ओर से खरीद की कोई व्यवस्था नहीं होने के बाद किसान औने पौने दाम पर धान बेचने को मजबूर हो रहे हैं।
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