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माध्यमिक शिक्षा कार्यालय में संसाधनों की कमी

संवाद सहयोगी, किशनगंज : माध्यमिक शिक्षा कार्यालय में कर्मियों की कमी के साथ संसाधान का भी अभाव है। जिस कारण कार्यालय के कार्य में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हाई स्कूल और प्लस टू हाई स्कूलों के संचालन के लिए अधिकतर कार्य यहीं से संचालित होते हैं। निदेशक माध्यमिक शिक्षा कार्यालय का अधिकतर प्रत्राचार भी जिला माध्यमिक शिक्षा को ही भेजे जाते हैं। लेकिन इन सब कार्यों के निपटाने में संसाधन की कमी के कारण कई प्रकार की परेशानियां उत्पन्न होते रहते हैं।
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वर्ष 2018 में राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान और शिक्षक शिक्षा को एकीकृत कर दिया गया। इसका नाम समग्र शिक्षा अभियान रखा गया। माध्यमिक शिक्षा कार्यालय में कार्यरत पांच कर्मियों में से तीन कर्मियों को समग्र शिक्षा कार्यालय भेज दिया गया। इसके बाद से इस कार्यालय में केवल दो प्रखंड साधन सेवी ही कार्यरत हैं। इसके अलावा कार्यालय कार्य के लिए कंप्युटर और ऑपरेटर के नहीं होने से परेशानी दोगुनी हो गई है।
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पशुपालक बरतते रहें सावधानी
संवाद सहयोगी, किशनगंज : कोराना वायरस के संक्रमण का खतरा अभी भी बना हुआ है। इस वजह से पशुपालकों की जिम्मेदारी बनती है कि वे हर संभव सावधानी बरते। किसी के बहकावे में नही आएं। इस समय अधिकतर लोग बिना मास्क के ही घूमते रहते हैं। लेकिन उन्हें सोचना चाहिए कि कोरोना का कहर अभी भी जारी है। यह जानकारी वैज्ञानिक डॉ. नीरज प्रकाश ने दी।
उन्होंने बताया कि डेयरी चलाने वाले पशुपालकों को कोशिश करनी चाहिए कि अनजान व्यक्ति को डेयरी में प्रवेश करने की अनुमति नही दें। डेयरी में काम करने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य की साप्ताहिकी जांच भी करवाते रहें। यदि किसी कारणवश श्रमिकों को बुखार और खांसी सहित कई अन्य लक्षण दिखते हैं तो उनके स्वास्थ्य की जांच अवश्य करवाएं। काम करने वाले श्रमिकों की संख्या सीमित करें। जहां तक संभव हो डेयरी के प्रवेश द्वार पर साबुन, हैंड सैनिटाइजर और तौलिया भी रखवाएं। डेयरी में प्रयोग होने वाले उपकरण एवं उप साधनों कर नियमित रुप से सैनिटाइज करना जरूरी है।
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वर्मी कंपोस्ट से बनी रहती खेतों की उर्वरा शक्ति
संवाद सहयोगी, किशनगंज : वर्मी कंपोस्ट के प्रयोग से खेतों में फसल उत्पादन तो बढ़ता ही है। साथ ही खेतों के मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है। इस वजह से किसानों को चाहिए कि अपने खेतों में अधिक से अधिक वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करें। यह जानकारी डीएओ प्रवीण कुमार झा ने दी। उन्होंने बताया कि बेकार पड़े कार्बनिक पदार्थ जैसे पुआल, भूसा, सूखी घास, जलकुंभी सब्जियों के छिलके, पशुओं के गौ मूत्र और केंचुओं की सहायता से बनाए गए खाद को वर्मी कंपोस्ट कहते हैं। इनमें सामान्यत: 1.2-1.6 फीसद नेत्रजन, 1.8 से लेकर 2 फीसद फॉस्फोरस और 0.5 -0.7 फीसद पोआश पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इनमें लाभदायक जीवाणु, हार्मोन एवं इन्जाइम भी पाए जाते हैं। इसके प्रयोग से मिट्टी की जल धारण क्षमता एवं वातायन में बढ़ोतरी होती रहती है। साथ ही जल वाष्प एवं मृदा अपरदन कम होता है।
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