चोखा-भात खाना भी नहीं होगा आसान

सुपौल। किसानों की किस्मत हमेशा धोखा देती है। मेहनत और लागत लगाकर किसान खेती तो करते हैं लेकिन कभी प्रकृति तो कभी व्यवस्था की मार उन्हें लाचार बना देती है। धान की खेती इसबार किसानों के लिए आसान नहीं रही। अत्यधिक बारिश के कारण धान की फसल तीन-तीन बार डूब गई फिर भी किसानों ने भरोसा नहीं छोड़ा। कहीं-कहीं तो तीन-तीन बार धान की रोपाई की। फसल जब बाली लगने पर आई तो कीट का प्रकोप भी कई इलाके में हो गया। इससे निबटे और फसल पकने लगी तो पूछकटवा कीट पकी बालियों को काटकर गिराने लगा। खैर जैसे-तैसे किसान धान की फसल काट रहे हैं। जितनी उम्मीद थी वह पैदावार किसानों के घर नहीं आ रही। अब आगे किसान रबी की बोआई में जुटे हैं। इस मौसम में आलू की खेती भी किसान बड़े पैमाने पर करते हैं लेकिन बीज के दाम सुन किसान हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। किसानों का कहना है कि इस बार चोखा भात खाना भी आसान नहीं होगा।


मरौना प्रखंड क्षेत्र में किसानों ने पूर्व में बाढ़ में धान की फसल डूबने के बाद तीन-तीन बार रोपनी की थी। छातापुर प्रखंड क्षेत्र में सुरसर और गेंडा नदी के उफान से भी धान की फसल प्रभावित हुई। तिलयुगा नदी के पानी ने मरौना प्रखंड क्षेत्र के परिकोच, गिदराही, कुआटोल, मंगासिहोल, गणेशपुर, कोनी आदि गांवों में धान की फसल को चौपट कर दिया था। यहां के किसान प्रभात यादव, सुखदेव मंडल, जगदीश मंडल आदि बताते हैं कि इस बार धान की फसल पर मौसम की मार जमकर पड़ी। कहा कि कई किसानों ने तो रोपनी के बाद फसल डूब जाने के कारण तीन-तीन बार रोपाई की। कई किसानों ने तो तटबंध के बाहर से बीज खरीदकर भी रोपाई की थी। छातापुर, डहरिया, तिलाठी, लक्ष्मीनियां आदि गांवों में गेडा नदी के कारण और सुरसर नदी ने राजेश्वरी, चुन्नी, जीवछपुर, माधोपुर आदि गांव में फसल को नुकसान पहुंचाया। अत्यधिक बारिश के कारण कमोबेश यह नुकसान हर जगह हुआ। पिपरा प्रखंड के कई गांवों में बाली निकलने के समय भी कीट का प्रकोप हुआ फिर पकी फसल पर पूछकटवा नामक कीट का प्रकोप तो बहुतायत जगहों पर हो गया। यह कीट धान की पकी बालियों को काटकर गिरा देता है। कटैया के किसान रामदत मंडल ने बताया कि कीड़ों के प्रकोप से धान की पैदावार काफी प्रभावित हुई है। किसानों के मंसूबे टूट गए हैं। टूटे मंसूबे से किसान रबी की बोआई में जुटे हैं।
जिले की मिट्टी और जलवायु अनुकूल होने के कारण रबी के मौसम में आलू की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। हर वर्ष औसतन 8 से 10 हजार हेक्टेयर में यहां आलू की खेती की जाती है। सदर प्रखंड समेत त्रिवेणीगंज, बसंतपुर व अन्य प्रखंडों के किसान इसे नकदी फसल के साथ-साथ आवश्यकता के अनुरूप खेती करते हैं परंतु इस बार आलू बीज की कीमत अधिक होने के कारण किसान परेशान हैं। आलू की खेती मामले में जिले त्रिवेणीगंज का पहला स्थान है। यहां एक ही खेत में किसान तीन-तीन बार उगाते हैं। प्रखंड के बाजितपुर गांव निवासी शैलेंद्र सिंह बताते हैं कि किसान हर खेती तो कर लेते हैं लेकिन जब बेचने की बारी आती है तो उनके हाथ खाली रह जाते हैं। बताया कि बाजार में आलू बीज पांच हजार रुपये प्रति क्विटल है। किसानों के खेत से जब आलू निकलने लगेंगे तो इसकी कीमत अधिकतम आठ सौ रुपये प्रति क्विटल हो जाएगी। ऐसे में किसान खेती की हिम्मत करें तो कैसे।
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