प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सूत्रधार थे शहीद मातादीन भंगी

बिहारशरीफ। स्थानीय बिहारशरीफ के भैसासुर मोहल्ले में साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी मातादीन भंगी का 195वीं जयंती समारोह मनाया गया। इस मौके पर उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई और उनके कृतित्व पर चर्चा की गई। समारोह की अध्यक्षता शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह तथा संचालन मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने किया। उन्होंने सबसे पहले 'मैं वो मजदूर हूं, जो दुनिया में झोपड़ी को महल बनाता हूं' शेर सुनाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। विषय प्रवेश कराते हुए शंखनाद के सचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि शहीद मातादीन के पिता का नाम जयनारायण भंगी था, जो बड़े देशभक्त थे। इस तरह उन्हें देशभक्ति विरासत में मिली थी। जब देश के आजादी आंदोलन की बात छिड़ती है, तो कमजोर वर्ग उसमें कहीं नहीं दिखते। जो लोग अंग्रेजों के साथ रहे, वो राय साहब, रायबहादुर की उपाधियों से सुसज्जित होते रहे, उन्हें देशभक्तों की श्रेणी में ला दिया गया। जबकि उनके ऊपर ना जाने कितने क्रांतिकारियों के खून का कर्ज चढ़ा है। आज हम कम से कम हम शहीद मातादीन जैसी शख्सियत को याद करके उन्हें श्रद्धांजली तो दे ही सकते हैं। उनकी जयंती मनाने का उद्देश्य उनकी वीरगाथा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की छोटी सी कोशिश है। शंखनाद के उपाध्यक्ष बेनाम गिलानी ने कहा कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का शोला मंगल पाण्डेय थे तो शोले में आग पैदा करने की प्रथम चिगारी मातादीन भंगी थे। मातादीन के पूर्वज मेरठ के रहने वाले थे। मगर वे नौकरी के सिलसिले में अंग्रेजों की तत्कालीन राजधानी कोलकाता में बस गए थे। वहां मातादीन बैरकपुर कारतूस फैक्ट्री में सफाई कर्मी थे। अंग्रेज फौज के संपर्क में रहने से मातादीन को वहां की सारी गतिविधियों की जानकारी रहती थी। बात 22 जनवरी 1857 की है। वहां सैनिक के तौर पर मंगल पांडेय भी थे। वहीं एक दिन मातादीन ने मंगल पाण्डेय से कहा था कि आप ब्राह्मण हैं, परंतु जिन कारतूसों पर गाय और सूअर की चर्बी लगी होती है, उन्हें अपने मुंह में डालकर दांतों से तोड़कर बंदूक में लगाते हो। यह सुनकर मंगल पाण्डेय के अंदर अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। विरोध को दबाने के लिए अंग्रेज अधिकारियों ने मंगल पांडेय पर गोलियां चला दी। जवाब में मंगल पांडेय ने भी बंदूक चला दी। मंगल पांडेय घायल हो गए। इस घटना के कारण सैनिकों में विद्रोह भड़क उठा। मातादीन भंगी भी कर्तव्य निभाने में पीछे नहीं रहे। उन्होंने अंग्रेजों के रखे हथियारों, गोला-बारूद, रसद तथा ठिकानों का पता विद्रोही सिपाहियों को बता दिया और और 1857 की क्रांति में बड़े सहयोगी बन गए। बाद में अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों को विद्रोह के लिए भड़काने का मुख्य आरोपी मातादीन भंगी को माना। यह मुकदमा मातादीन भंगी के नाम से चला। सभी गिरफ्तार क्रांतिकारियों को कोर्ट मार्शल के जरिए फांसी की सजा दी गई। मातादीन भंगी भी मातृभूमि के लिए 08 अप्रैल 1857 को शहीद हो गए। पहली फांसी मातादीन भंगी दी गई। उसके बाद मंगल पांडेय और बाकी गिरफ्तार सैनिकों को फांसी दी गई। इस मुकदमे का नाम ही 'ब्रिटिश सरकार बनाम मातादीन' था। मौके पर नरेश डोम ने कहा कि शंखनाद के लोग धन्यवाद के पात्र हैं। इतिहास के पन्नों से गायब हुए स्वतंत्रता सेनानियों को सामने लाना सराहनीय है।


मौके पर डॉ. आनंद व‌र्द्धन, समाजसेवी सरदार वीर सिंह, समाजसेवी दीपक कुमार, प्रो.विश्राम प्रसाद, समाजसेवी धीरज कुमार, समाजसेवी विजय कुमार, कवयित्री प्रियारत्नम, केदार प्रसाद वर्मा, संजय कुमार शर्मा सहित कई लोग मौजूद रहे।
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