कैमूर में रबी फसल के बीजों को दिया जाएगा सुरक्षा टीका

कैमूर। जिले में रबी फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए कृषि विभाग द्वारा लगातार किसानों को जागरूक करने का काम किया जा रहा है। फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए बोआई से पहले बीजों का उपचार अवश्य कराने की जागरुकता किसानों के बीच शुरू करने की कवायद प्रारंभ कर दी गई है। बीज टीकाकरण अभियान के अंतर्गत किसानों को जागरूक करने का काम शुरू किया गया है। इसके लिए प्रचार वाहनों को गांव-गांव में भेज किसानों को जागरूक किया जा रहा है।

सहायक निदेशक पौध संरक्षण कृषि विभाग की सहायक निदेशक पिकी दास ने बताया कि किसानों को अधिक फसल उत्पादन के लिए बोआइ से पहले बीज का उपचार अवश्य करा लेना चाहिए। इससे कम खर्च में किसान आसानी से अधिक लाभ पा सकते हैं। रबी फसल की अच्छी पैदावार के लिए सरकार द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है। इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए जिले के सभी प्रखंड क्षेत्रों में जागरूकता रथ को रवाना किया गया है। इसके माध्यम से जिले के विभिन्न क्षेत्रों के किसानों को बोआई के पूर्व बीज का उपचार कराने के लिए जागरूक किया जा रहा है। दलहन तिलहन मक्का गेहूं आदि रबी फसल के बीजों का उपचार किया जाएगा। इसमें हर बीज को सुरक्षा टीका भी दिया जाएगा। जैसे हर बच्चे को पोलियो का टीका दिया जाता है। इस कार्य के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों के अतिरिक्त पौध संरक्षण पर्यवेक्षक सहित अन्य कर्मी लगे हुए है।
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सहायक निदेशक पौध संरक्षण ने बताया कि गेहूं फसल के बीच में फफूंद जनित रोगों से निजात के लिए काबेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण दो ग्राम या ट्राइकोडरमा का पांच ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार किया जाना चाहिए।
सूत्र कृमि नेमाटोड का दस प्रतिशत नमक के घोल में बीज भींगोकर फिर साफ पानी में से दो से तीन बार धोना चाहिए। मिट्टी जनित कीट के लिए क्लोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत, ईसी पांच मिली प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। मक्का बीज को फफूंद जनित रोग से रोकथाम के लिए बीज को उपचार करना आवश्यक है। इसके लिए काबेन्डाजिम 50 प्रतिशत, घुलनशील चूर्ण दो ग्राम या टाइकोडरमा का पांच ग्राम प्रति किलो की दर से बीजोपचार किया जाना चाहिए एवं मिट्टी जनित कीट के लिए क्लोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत इ.सी. पांच मिली प्रति किलो ग्राम की दर से उपचार करना चाहिए।
घड़ा विधि से बीजो पचार की विधि :
दलहनी बीज का उपचार - इसके लिए घड़ा में थोड़ा बीज एवं आवश्यक अनुपात में शोधक डालते हैं। घड़े का दो तिहाई भाग भर कर घड़े के मुंह को बंद कर इतना हिलाते हैं कि बीज और शोधक अच्छी तरह से मिल जाए। वही स्लरी विधि में शोधक की अनुशंसित मात्रा का गाढा घोल बनाकर बीज के ढेर पर देकर उसे दस्ताना पहने हाथों से अच्छी तरह मिला देते हैं। ताकि बीज पर शोधक की परत चढ़ जाए।
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