सरकारी क्रय केंद्रों पर बिकता है बिचौलियों का धान

-सरकारी नीतियों में खामियों की वजह से दिन प्रतिदिन बड़े किसान होते जा रहे हैं छोटे किसान

जागरण संवाददाता, सुपौल: सचमुच किसानों की तरक्की का रास्ता उनके खेतों और खलिहानों से होकर निकलता है, लेकिन सरकारी नीतियों में खामियों की वजह से दिन प्रतिदिन बड़े किसान छोटे किसान होते जा रहे हैं और छोटे किसान मजदूर बनते जा रहे हैं। हालांकि सरकार ने किसानों के लिए घोषणाओं की लंबी फेहरिस्त खड़ी कर दी है। जमीनी हकीकत उसके ठीक उलट है। किसानों को समय पर खाद, बीज, सिचाई और खास बात यह है कि उनके उपज का सही समय पर उचित दाम मिल जाए तो किसान अपनी सेहत स्वयं सुधार लेंगे। जहां तक सरकारी खरीद का सवाल है तो समझ में नहीं आता कि किसान जिसकी तादाद जिले में 70 प्रतिशत है सरकारी क्रय केंद्रों पर अपना धान नहीं बेच पाते। बावजूद सरकार के खरीद का लक्ष्य पूरा हो जाता है। मेहनत व पसीने से किसान खेतों में फसल उगाते हैं और जब खलिहान में आता है तो उसके खरीदार नहीं मिलते। फलस्वरूप किसान मजबूरन अपनी उपज को बिचौलियों के हाथों बेचते हैं और बिचौलिया उसी धान को क्रय केंद्रों पर बेचते हैं। किसानों की मानें तो 80 फीसद ऐसे किसान हैं जो अपनी फसल खलिहान में आने के बाद एक महीने भी नहीं रख पाते हैं। क्योंकि वे पूर्व में ही कर्ज तले दबे होते हैं। धान बिक्री से मिली रकम से रबी की फसल उगाते हैं। यहां सरकार धान खरीद 23 नवंबर से 31 मार्च तक करती है। पिछले वर्ष को ही देखे तो दिसंबर और जनवरी महीने तक धान खरीद का लक्ष्य 20-25 प्रतिशत था। वहीं 15 मार्च आते ही खरीद सौ प्रतिशत हो गया। जाहिर सी बात है कि इन केंद्रों पर किसान के बदले बिचौलियों की धान इन केद्रों पर बिकती है। भले ही व्यवस्था का असर सरकार के सेहत पर पड़े या न पड़े लेकिन सरकार के इस लुंज-पुंज व्यवस्था का असर किसानों पर निश्चित ही पड़ता है।
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