ऑस्ट्रेलिया में टीम इंडिया की परफॉर्मेंस का इकनॉमी कनेक्शन पता है?

एक पारी के स्कोर के आधार पर बड़ा निष्कर्ष निकालना ठीक होगा क्या? हां, अगर टेस्ट मैच की एक पारी में पूरी टीम 36 रन ही बना पाए तो समझना चाहिए कि मामला गड़बड़ है. शनिवार को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इंडिया की पूरी टीम 36 रन पर सिमट गई. यह हमारी टीम का अबतक का सबसे खराब प्रदर्शन है. इससे पहले टीम इंडिया का इतना खराब प्रदर्शन 46 साल पहले इंग्लैंड के लॉर्ड्स मैदान पर हुआ था जब पूरी टीम एक पारी में 42 रन पर सिमट गई थी.

20वीं सदी के शुरुआती दशकों में हुआ करता था ऐसा...
आंकड़ों को देखें तो दूसरे देशों की टीमों ने एक पारी में इससे कम रन भी बनाए हैं. लेकिन ये सारे मामले 1974 या उससे पहले के हैं. मतलब यह कि इस तरह के हादसे 20वीं सदी के शुरुआती दशकों में हुआ करते थे. जबसे वनडे और टी-20 जैसे फटाफट क्रिकेट का बोलबाला हुआ है, यह पूरा गेम बल्लेबाजों का होता जा रहा है. क्रिकेट में गेंदबाजों की हैसियत लगातार कम हो रही ह
टीम इंडिया लड़खड़ा क्यों रही है?
आखिर हाल तक विश्वविजयी मानी जानी वाली टीम इंडिया इतनी लड़खड़ा क्यों रही है? जवाब से पहले एक सवाल पर गौर कीजिए. पाकिस्तान की क्रिकेट टीम कब तक काफी मजबूत मानी जाती रही? और हाल के दिनों में बांग्लादेश की टीम क्या आत्मविश्वास से भरी नजर नहीं आने लगी है?, बांग्लादेश की टीम तो पाकिस्तानी टीम को भी अब आसानी से हराने लगी है.
पाकिस्तान का उदाहरण समझिए
1980 के दशक में पाकिस्तान की क्रिकेट टीम की बादशाहत थी. उसके पास इमरान खान, जावेद मियांदाद और जहीर अब्बास जैसे शानदार प्लेयर तो थे ही. साथ ही टीम में ऐसा आत्मविश्वास था कि वो किसी भी समय हार नहीं मानती थी. इसी दौर में पाकिस्तानी टीम ने वर्ल्ड कप भी जीते और कई यादगार प्रदर्शन भी किए. उस दशक में भारत और पाकिस्तान के बीच 30 वनडे मैच खेले गए और इसमें से टीम इंडिया सिर्फ 9 मैचों में ही जीत दर्ज कर पाई. उसी समय हमारी टीम में भी सुनील गावस्कर, मोहिंदर अमरनाथ और कपिल देव जैसे वर्ल्ड क्लास खिलाड़ी थे लेकिन टीम में शायद 'एक्स-फैक्टर' की कमी थी.
हार का 'इकनॉमी कनेक्शन'
अस्सी के बाद नब्बे के दशक में आखिर क्या हो गया? अंग्रेजी की कहावत का इस्तेमाल करें तो जवाब होगा 'इट्स इकनॉमी''. 1960 से 1990 तक पाकिस्तान में औसत आर्थिक विकास दर 5 फीसदी या उससे ऊपर ही रही. जबकि भारत में हालात ठीक नहीं थे और औसत विकास दर 2 फीसदी के आसपास थी. 1990 के दशक में इसमें बदलाव शुरू हुआ. जहां भारत की अर्थव्यवस्था छलांग मारने लगी, पाकिस्तान के बुरे दौर शुरू हो गए.
जहां 2000 के आसपास दोनों देशों में पर कैपिटा इनकम एक समान थे अब फासला काफी बढ़ गया है. पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पिछले कई सालों से आईसीयू में ही है. और इसका असर हर सेक्टर्स पर पड़ा है. और खेल भी उससे अछूता नहीं है. चाहे वो हॉकी का टर्फ हो या क्रिकेट का पिच पाकिस्तान फिलहाल हर मैदान पर फिसड्डी ही है.
अब भारत की हालत समझिए
2000 के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड तेजी रही है. इसके बाद से ही हमारी टीम ओलंपिक मुकाबलों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करने लगी है. और क्रिकेट की पिच पर तो अपनी टीम हर फॉर्मेट में पिछले कई सालों से सबसे अच्छों में से एक रही है. इसी दौरान हमने टी-20 और वनडे दोनों ही फॉर्मेट में वर्ल्ड कम भी जीते और देश में और विदेश में हर टीम को धूल चटाई.
लेकिन लगता है कि अब विश्वविजयी अभियान में ब्रेक लग गया है. वही टीम, वही डोमेस्टिक सर्किट, वही सर्पोर्ट स्टाफ, वही आईपीएल की फैक्ट्री जहां से दनादन खिलाड़ी तैयार होकर निकल रहे हैं. लेकिन क्रिकेट टीम में आत्मविश्वास की कमी दिखती है. कोई अकेला खिलाड़ी करामात कर जाए तो और बात है. लेकिन एक यूनिट के तौर पर टीम में 'एक्स-फैक्टर नहीं दिख रहा है. तो आखिर क्या बदल गया है? इट्स इकनॉमी.
अर्थव्यवस्था में सुस्ती का असर तो दिख रहा है!
जैसा कि पहले ही कह चुका हूं कि एक मैच से बड़े ट्रेंड को पकड़ना मुश्किल है. लेकिन पीछे मुड़कर देखने से हमें साफ दिख रहा है कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती का असर खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर भी होता है. कम से कम भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश के मामलों में तो यह साफ दिख रहा है.
इसलिए खोए आत्मविश्वास को पाने के लिए अर्थव्यवस्था में सुस्ती को फिक्स करना होगा. तभी क्रिकेट टीम का विश्वविजयी अभियान भी थोड़े विराम के बाद फिर से चालू हो जाएगा. उम्मीद है कि एडीलेड का झटका एक अपवाद ही हो, एक ट्रेंड की शुरूआत तो कतई ना हो.
(मयंक मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो इकनॉमी और पॉलिटिक्स पर लिखते हैं. उनसे @Mayankprem पर ट्वीट किया जा सकता है. इस आर्टिकल में व्यक्त विचार उनके निजी हैं और क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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