बाढ़ बहा ले जाती धान लेकिन दलहन के लिए वरदान (जागरण विशेष)

सुनील कुमार, सुपौल : कोसी प्रभावित सुपौल जिले में हर वर्ष बाढ़ का आना तय होता है जो जान माल से लेकर खेतीबाड़ी तक को चौपट कर जाती है लेकिन इसके उलट सच यह भी है कि यह दलहन फसल के लिए वरदान भी साबित हो जाती है। बाढ़ के पानी के साथ आने वाली मिट्टी प्रभावित इलाकों के खेतों में फैल जाती है जिससे खेती की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। बाढ़ के बाद जब इन खेतों में फसल लगाई जाती है तो उनका पैदावार बढ़ जाता है और किसानों के लिए सोना उगलने वाली मिट्टी बन जाती है। यही वजह है कि बाढ़ से बाहरी क्षेत्रों में जहां दलहन फसल का रकबा घटा जा रहा है वहीं प्रभावित क्षेत्रों में इन फसल की खेती जमकर की जाती है। जिला कृषि कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार इस वर्ष जिले में जितने क्षेत्र दलहन खेती से आच्छादित हैं उनका एक तिहाई क्षेत्र बाढ़ प्रभावित इलाके में है।

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दलहन से किसानों को होती है अच्छी आमदनी
दरअसल जब इन क्षेत्रों में बाढ़ आती है तो मिट्टी में नमी की मात्रा बरकरार रहती है जिसका किसान भरपूर फायदा उठाते हैं। अगस्त महीने तक बाढ़ का पानी जब उतर जाता है तो खेतों में नमी रहने के कारण सितंबर महीने से ही खेसारी और मटर की बोआई कर दी जाती है। इसके अलावा अन्य दलहन भी लगाए जाते हैं। हरा सोना मानी जाने वाली खेसारी की फसल के लिए बाढ़ वरदान बनती है। बलुआही और दोमट मिट्टी के कारण यहां दलहन का बेहतर उत्पादन होता है। इस समय फसल के उपयुक्त जलवायु होने के कारण पैदावार भी बेहतर होती है। जनवरी आते-आते फसल तैयारी के कगार पर होती है। दलहन फसल के लिए किसानों को बाजार भी उपलब्ध हो जाता है जिसमें अच्छा मुनाफा हो जाता है।
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कहते हैं कृषि वैज्ञानिक
राघोपुर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार के अनुसार तटबंध के अंदर तथा इसके आसपास के खेतों में हर वर्ष बाढ़ आती है। इसको लेकर किसान भी पूर्व तैयारी करते हैं। बाढ़ आने से पूर्व किसान खेतों की जोताई कर इन्हें छोड़ देते हैं जब बाढ़ का पानी खेतों में जमा होता है तो खर-पतवार गलकर खाद बन जाता है। पानी उतरने के साथ ही बीज डाल दिया जाता है। बाढ़ से पूर्व खेत तैयार रहने के कारण किसानों को बीज डालने में कोई परेशानी भी नहीं होती है। जिससे खेती में औसतन खर्च भी कम आता है किसानों को बिना परेशानी उपज प्राप्त हो जाती है।
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कहते हैं जिला कृषि पदाधिकारी
जिला कृषि पदाधिकारी समीर कुमार ने बताया कि इस वर्ष जिले में 800 हेक्टेयर खेतों में दलहन की खेती की गई है जिसमें से लगभग 500 हेक्टेयर दलहन की खेती बाढ़ प्रभावित इलाकों में की गई है बताया कि बाढ़ प्रभावित इलाके का दलहन फसल है इसमें लागत काफी कम होता है जबकि बाढ़ के कारण खेती की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। समय से बाढ़ का पानी अगर उतर जाए तो अगता मटर की फसल निकलती है जिसका बेहतर बाजार मूल्य मिलता है और किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिल जाता है। कहा कि खेसारी जैसा दलहन फसल किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। कोई किसान इसे साग के रूप में आमदनी का जरिया बना लेता है तो कोई फसल तैयार कर इन्हें ऊंचे भाव में बाजार में बेच डालता है। किसी न किसी तरीके से किसानों को इन दलहन फसल से मुनाफा हो ही जाता है।
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