CM Nitish Kumar के आदेश के एक दशक बाद भी मुचलिंद सरोवर का नहीं हो सका सुंदरीकरण

[विनय कुमार मिश्र] बोधगया (गया)। इसे सरकार की उपेक्षा नहीं कहा जा सकता। यह प्रशासनिक अधिकारियों के नजरअंदाज का परिणाम है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आदेश के एक दशक बाद भी बु्द्ध कालीन मुचलिंद सरोवर का सुन्दरीकरण का कार्य पूर्ण नहीं हो सका है। यह सराेवर विश्वदाय धराेहर महाबोधि मंदिर से दक्षिण लगभग डेढ़ किमी दूरी पर मोचारीम गांव में स्थित है। इस सरोवर का हाल जानने स्वयं सीएम कुमार वर्ष 2010 में बोधगया प्रवास के दौरान रात में अधिकारियों के साथ गए थे।

तब ही इसके विकास का खाका तैयार किया गया था। उसके बाद सरोवर के सुन्दरीकरण कार्य के लिए आसपास के भूखंड का अधिग्रहण का कार्य शुरू हुआ और चाहरदीवारी व सीढ़ी का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। एक दशक बाद फरवरी 2020 में पुन: सीएम कुमार बोधगया आए और मुचलिंद सराेवर के सुन्दरीकरण कार्य के प्रगति देखने मोचारीम गए। तब उन्होंने संबंधित विभाग के अधिकारियों को फटकार भी लगाया था। उन्होंने कहा कि यह बुद्ध कालीन ऐतिहासिक सरोवर है। जल्द से जल्द इसका सुन्दरीकरण का कार्य संपन्न हो। इसी दौरान थाईलैंड के एक बौद्ध भिक्षु बिग बाबा ने सरोवर के बीच में 10 फीट ऊंची भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित करने की इच्छा व्यक्त करने हुए अनुमति मांगी थी। इस पर सीएम कुमार ने अविलंब हामी भर दी थी।
बाकी है जमीन अधिग्रहण का कार्य
मुचलिंद सरोवर के सुन्दरीकरण की मांग करने वाले ग्रामीण सुखदेव प्रसाद कहते हैं कि प्रशासनिक अधिकारियों के नजरअंदाज के कारण जमीन अधिग्रहण का मामला लंबित है। सरोवर को छोड़कर तीन एकड़ 30 डिसमिल जमीन अधिग्रहण किया जाना है। लेकिन भूखंड के मालिकों के पास भूखंड का पूरा कागजात नहीं है। जिसके कारण अधिग्रहण कार्य प्रभावित है। जबकि पैसा आया हुआ है। जमीन अधिग्रहण कार्य पूर्ण नहीं होने से दक्षिण दिशा में चाहरदीवारी का निर्माण नहीं हो सका है। कोरोना काल से पहले जो कार्य चल रहा था। वह भी अभी बंद है।
सरोवर तक पहुंचने के लिए बना है बाईपास
लगभग चार वर्ष पूर्व स्थानीय विधायक कुमार सर्वजीत के पहल पर इस ऐतिहासिक सरोवर तक पहुंचने के लिए बाइपास का निर्माण कराया गया। इससे न सिर्फ पर्यटक बल्कि प्रखंड के दक्षिणी क्षेत्र के गांव के ग्रामीणों को भी फायदा हुआ। पहले इस सरोवर या दक्षिणी क्षेत्र के गांवाें तक पहुंचने के लिए महाबोधि मंदिर से सटे गोदाम रोड होकर जाना पड़ता था। जिससे पर्यटकों को सड़क जाम से दो-चार होना पड़ता था। बाइपास बन जाने से लोग धड़ल्ले से यहां तक आवागमन करते हैं। यहां तक पहुंचने के लिए निरंजना नदी के किनारे-किनारे टीकाबिगहा होते हुए एक और सड़क प्रस्तावित है।
सरोवर किनारे भगवान बुद्ध ने लगाया था ध्यान
मुचलिंद सरोवर के किनारे भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पश्चात छठा सप्ताह व्यतीत किया था। भगवान बुद्ध के जीवन में घटित इस घटना को महाबोधि मंदिर परिसर स्थित बनाए गए मुचलिंद सरोवर में दर्शाया गया है। जहां शेष नाग के पूछं पर भगवान बुद्ध की ध्यान मुद्रा में प्रतिमा है। जानकार बताते हैँ कि मुचलिंद सरोवर के किनारे ध्यान में तल्लीन भगवान बुद्ध को आंधी और बारिश होने का भी अंदाजा नहीं था। तभी नागराज मुचलिंद ने उन्हें अपने पूंछ से सात बार लपेट कर अपना फन उपर फैलाकर बारिश से बचाया था।
चाहरदीवारी पर ग्रामीण ठाेकते गाेइठा
भले ही सरोवर का बौद्ध धर्मावलंबियों के बीच काफी महत्व हो। लेकिन ग्रामीणों को इसका एहसास नहीं है। सरकार के पहल के पहले इसमें गांव के गंदे पानी का जमाव रहता था और अब चाहरदीवारी और सीढ़ी बन जाने से उस पर ग्रामीण महिलाएं गोइठा ठोकती है। ग्रामीण सुखदेव प्रसाद कहते हैं कि महिलाओं को इसके लिए मना किया जाता है। लेकिन वे समझने को तैयार नहीं होती।
सुंदरीकरण में सहयोग को तैयार है थाईलैंड के भिक्षु
इस सरोवर के सुन्दरीकरण में थाईलैंड के भिक्षु बिग बाबा हर तरह का सहयोग करने को तैयार हैं। वे कहते हैं कि सरकार और प्रशासन स्तर से अनुमति मिल जाए। तो सुन्दरीकरण के तय प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू कर दिया जाएगा। प्रोजेक्ट के तहत यहां पर डीलक्स शौचालय, शुद्ध पेयजल, स्वास्थ्य और एक अतिथि निवास बनाना है। साथ ही सरोवर में अत्याधुनिक प्रकाश का व्यवस्था भी प्रोजेक्ट में शामिल है।

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