आसान नहीं होगी केन-बेतवा लिंक परियोजना की राह



भोपाल (Bhopal) . प्रस्तावित केन-बेतवा लिंक परियोजना की राह आसान नहीं है. पडोसी राज्य उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र को सिंचाई और पीने का पानी देने के लिए तैयार की जा रही इस योजना में कई अडंगे हैं, ‎जिनका समाधान ‎निकालना आसान नहीं है.
राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर पर लगातार बैठकों के बाद परियोजना के दूसरे चरण की मंजूरी की तैयारी शुरू तो हुई है, पर मंजूरी तब मिलेगी, जब पन्ना टाइगर रिजर्व के 5500 हेक्टेयर डूब क्षेत्र के बदले वन विभाग को जमीन मिलेगी. इसके लिए राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (एनडब्ल्यूडीए) ने टाइगर रिजर्व से सटे 13 गांवों का चयन कर प्रस्ताव वन विभाग को भेजा है. विभाग ने इन गांवों की सेटेलाइट मेपिंग करा ली है. अब एनडब्ल्यूडीए संबंधित ग्रामीणों को मुआवजा देकर विभाग को जमीन सौंपेगा, तब कहीं मध्य प्रदेश टाइगर रिजर्व की भूमि एनडब्ल्यूडीए को सौंपने का प्रस्ताव केंद्र सरकार (Central Government)को भेजेगा.
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परियोजना से उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और मध्य प्रदेश को पानी के बंटवारे का मामला अब तक नहीं सुलझा है. ऐसे में पन्न्ा टाइगर रिजर्व के लिए 13 गांव खाली कराने का प्रस्ताव बड़ी रुकावट खड़ी कर सकता है. पन्ना जिले के पवई विकास खंड के तहत आने वाले इनमें से कुछ गांव धनाढ्य लोगों को बताए जाते हैं. ऐसे में विस्थापन का विरोध होना भी लाजमी है, पर पार्क के बाघ सहित अन्य वन्यप्राणियों को शिफ्ट करने के लिए इससे बेहतर जगह भी नहीं है.
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वन अधिकारियों का मानना है कि इससे पार्क का अस्तित्व बचा रहेगा, वरना पार्क पूरी तरह से उजड़ जाएगा. पार्क के लिए जिन गांवों का चयन ‎किया जाएगा उनमें कटहरी-बिल्हारा, कोनी, मझौली, गहदरा, मरहा, खमरी, कूड़न, पाठापुर, नैगुवा, डुंगरिया, कदवारा, घुघरी, बसुधा गांव का चयन पार्क विस्तार के लिए किया गया है. ये अमानगंज क्षेत्र के गांव हैं, जिनमें 8873 हेक्टेयर भूमि है. एनडब्ल्यूडीए को दूसरे चरण की मंजूरी तब मिलेगी, जब संस्था 13 गांवों को खाली कराकर वन विभाग को सौंप देगी.
इसके अलावा क्षतिपूर्ति वनीकरण, पार्क डेबलपमेंट, वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट सहित अन्य कार्यों के लिए तय शर्तों के मुताबिक करीब 6500 करोड़ रुपये दे देगी. परियोजना वर्ष 2005 में स्वीकृत हुई थी. तब से दोनों राज्यों में पानी के बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन पाई है. अनुबंध के मुताबिक उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) को परियोजना से रबी सीजन में 700 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) और खरीफ सीजन में 1000 एमसीएम पानी देना प्रस्तावित है. अब रबी सीजन के लिए 930 एमसीएम पानी मांगा जा रहा है. इस पर दोनों राज्यों में सहमति नहीं बन पा रही है. बता दें कि परियोजना के लिए 6017 हेक्टेयर भूमि की जरूरत है. इसमें से 5500 हेक्टेयर क्षेत्र पन्ना पार्क का है. पार्क के कोर क्षेत्र की 4200 हेक्टेयर व बफर क्षेत्र की 1300 हेक्टेयर भूमि डूब में जा रही है.
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