दिल्ली में उप-राज्यपाल को हैं कई अधिकार सरकार को उनके आदेशों पर चलना जरूरी

नई दिल्ली (New Delhi) .दिल्ली के उप-राज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच समय-समय पर विभिन्न मुद्दों पर टकराव देखने को मिलता रहा है. 2019 में दोनों की शक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने फैसला भी सुनाया था. आपको बता दें कि 69वें संविधान संशोधन के तहत वर्ष 1991 में दिल्ली को विशेष राज्य का दर्जा देकर इसको इसको राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र घोषित किया गया.

दिल्ली में उपराज्यपाल का पद पहली बार सितंबर 1966 में सामने आया था. राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक पांच वर्ष के लिए दिल्ली के उप-राज्यपाल की नियुक्ति की जाती है. आपको यहां पर ये भी बता दें कि देश में सभी केंद्र शासित प्रदेश एक ही श्रेणी के जरूर है लेकिन यहां पर प्रशासनिक पद्धित सभी में एक समान नहीं है. सभी केंद्र शासित प्रदेशों में प्रशासन राष्ट्रपति के माध्यम से उप-राज्यपाल करते हैं.
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संविधान के अनुच्छेद 6 के मुताबिक उप-राज्यपाल को दिल्ली विधानसभा का सत्र बुलाना, विधानसभा का स्थगन और इसके विघटन का अधिकार है. उन्हें ये भी सुनिश्चित करना होता है कि दो सत्रों के बीच छह माह से अधिक का समय न हो. वहीं संविधान के अनुच्छेद 9 के अनुसान किसी लंबित विधेयक या किसी अन्य मुद्दे पर विधानसभा को अपना संदेश भेज सकते हैं. इसके बाद इस पर कार्रवाई की रिपोर्ट विधानसभा को उनको देनी जरूरी होती है. इसी तरह से अनुच्छेद 22 के अंतर्गत उन्हें कुछ अन्य शक्तियां भी दी गई हैं. इसके तहत उनकी सहमति के बिना किसी भी बिल को सरकार विधानसभा में पेश नहीं कर सकती है. इनमें कर लगाना या हटाना या इसमें परिवर्तन करना शामिल है. इसके अलावा वित्तीय दायित्वों से संबंतिधक कानूनों में संशोधन भी बिना उप-राज्यपाल की सहमति से नहीं किए जा सकते हैं. इन सभी के अलावा विधानसभा द्वारा पारित किसी भी बिल को उप-राज्यपाल की अनुमति के लिए पेश करना जरूरी होता है. उनके पास इस बिल को पारित करने, खारिज करने का पूर्ण अधिकार है.
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किसी बिल को अस्वीकार या उस पर असहमति की सूरत (Surat) में विधानसभा इसे परिवर्तन कर या उप-राज्यपाल द्वारा सुझाए गए बिंदुओं या उठाए गए सवालों को हल कर इसको परिवर्तित कर दोबारा उन्हें भेज सकती है. आपको बता दें कि दिल्ली में आईपीएस और आईएएस की नियुक्ति का अधिकार भी उनके ही पास है. सरकार को इनसे जुड़े तबादले के लिए भी उप-राज्यपाल की मंजूरी जरूरी होती है. आपको बता दें कि अन्य राज्यों के राज्यपाल मंत्री समूह की सलाह पर काम करते हैं जबकि दिल्ली के उपराज्यपाल के लिए ऐसा करना जरूरी नहीं है.
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