ग्रेटा, रिहाना के ट्वीट पर क्या मोदी सरकार ने ज़रूरत से ज़्यादा प्रतिक्रिया दी?

जानी मानी अंतरराष्ट्रीय गायिका रिहाना ने भारत में चल रहे किसान आंदोलन पर एक ट्वीट क्या किया, पूरे भारत में कोहराम मच गया गया.

भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर रिहाना का नाम लिए बिना कहा, "ऐसे मामलों पर टिप्पणी करने से पहले, हम आग्रह करेंगे कि तथ्यों का पता लगाया जाए और मुद्दों की उचित समझ पैदा की जाए. मशहूर हस्तियों द्वारा सनसनीखेज सोशल मीडिया हैशटैग और टिप्पणियों के प्रलोभन का शिकार होना, न तो सटीक है और न ही ज़िम्मेदारीपूर्ण है."
इसके साथ विदेश मंत्रालय ने दो हैशटैग भी शेयर किए, जो बुधवार को दिन भर टॉप ट्रेंड बने रहे.
भारत सरकार के मंत्रियों समेत कई खिलाड़ियों, फ़िल्मी हस्तियों, गायिकाओं ने भी सरकार के समर्थन में ट्वीट किए.
विदेश मंत्री एस जयशंकर उन हस्तियों के ट्वीट को री-ट्वीट करते पाए गए, जो आम तौर पर ऐसा नहीं करते हैं.
इसलिए विपक्ष, कुछ पत्रकार, कुछ मशहूर हस्तियाँ ये आरोप लगा रहे हैं कि सरकार ने सिविल सोसाइटी में दखल रखने वालों लोगों से अपने समर्थन में ट्वीट कराए हैं.
अभिनेत्री तापसी पन्नू ने भी ट्वीट कर गंभीर सवाल खड़े किए हैं.
इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि कुछ विदेशी हस्तियों के ट्वीट का जवाब विदेश मंत्रालय को बयान जारी कर देना चाहिए था या नहीं?
क्या विदेश मंत्रालय ने पूरे मामले पर 'ओवर रिएक्ट' तो नहीं किया? या ये सारे आरोप विपक्ष की राजनीति का हिस्सा भर है?
कुछ लोग ये भी सवाल उठा रहे हैं कि जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका में कैपिटल हिल हिंसा पर ट्वीट करते हैं, तो क्या ये अमेरिका के अंदरूनी मामले में दखल नहीं होता?
इसलिए ये समझने की ज़रूरत है कि विदेशी नागरिकों की टिप्पणियों पर सरकारें कब बोलती है कब नहीं?
भारत की मशहूर हस्तियाँ, जो आम तौर पर बड़े से बड़े आंतरिक मुद्दे पर चुप रहती हैं, वो क्यों और कैसे बोलीं?
उनका ट्वीट कितना ज़िम्मेदाराना है?
इतना ही नहीं ये भी समझने की ज़रूरत है कि रिहाना का भारत के कृषि क़ानूनों पर ट्वीट और भारत के प्रधानमंत्री का अमेरिका की कैपिलट हिल हिंसा पर ट्वीट दोनों की तुलना कितनी सही और कितनी ग़लत है.
भारतीय हस्तियों द्वारा सरकार के समर्थन में किए गए ट्वीट को प्रोफ़ेसर केसवन केंद्र सरकार की तरफ़ से किया गया 'पीआर एक्सरसाइज़' करार देते हैं.
'पीआर एक्सरसाइज़' यानी जनता के बीच सरकार की छवि सुधारने की एक मुहिम.
वैसे प्रोफ़ेसर केसवन को इसमें कोई बुराई भी नज़र नहीं आती. वो कहते हैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि बेहतर करने के लिए सरकारें ऐसा करती हैं.
"हो सकता है कि पीआर करने का ये सबसे अच्छा तरीका ना हो, लेकिन सरकारें ऐसा क्यों ना करें? पब्लिक ओपिनियन बनाने के लिए सोशल मीडिया एक महत्वपूर्ण हथियार है, लेकिन परेशान करने वाली बात ये है कि इस पूरे पीआर एक्सरसाइज़ का इंचार्ज विदेश मंत्री जैसे कैबिनेट मंत्री को ना बना कर विदेश मंत्रालय के पब्लिसिटी विभाग को बनाया जाना चाहिए था. दूसरी परेशानी ये है कि ये सब बुरे तरीक़े से मैनेज किया गया. ट्वीट से साफ़ पता चल रहा था कि भारत की मशहूर हस्तियाँ सरकार की कठपुतली बन कर रह गई हैं.
अक्षय कुमार और कंगना रनौत के ट्वीट से आप सहमत-असहमत हो सकते हैं. लेकिन इन लोगों ने पब्लिक में अपनी ये पोजिशन पहले से ले रखी है. लेकिन सचिन, रवि शास्त्री, अजिंक्य रहाणे उनकी पब्लिक पोजिशन ऐसी कभी नहीं रही.
एक बार के लिए हम ये मान भी लें कि सभी भारतीय हस्तियों ने रटी-रटी बातें नहीं लिखी, मन से ट्वीट किया. लेकिन इतना तो सच है कि उन्हें ऐसा करने को कहा गया. उदाहरण के तौर पर सचिन का ट्वीट या अजिंक्य रहाणे का ट्वीट ले लीजिए.
अगर रिहाना और ग्रेटा का रिकॉर्ड देखें, तो वो दुनिया में हर जगह हुए इस तरह के मुद्दों पर ट्वीट करती आईं हैं. सचिन, कोहली, रहाणे इनका ऐसा ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है.
उनका ऐसा करना थोड़ा अजीब लगा. ये लव-जिहाद, लींचिंग, दिल्ली हिंसा जैसे आंतरिक मुद्दों पर नहीं बोले. माना ये उनकी च्वाइस थी. इसमें कोई ग़लती भी नहीं है. बहुत लोग न्यूट्रल होना पसंद करते हैं. लेकिन इस मुद्दे पर बोलना, ये बताता है कि आप तब बोलेंगे, जब आपको बोलने के लिए कहा जाएगा."
किसान आंदोलन भारत का आंतरिक मामला है?
ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या किसान आंदोलन देश के बाक़ी आंतरिक मुद्दों से अलग है.
भारत में पिछले 72 दिन से चल रहा किसान आंदोलन नए कृषि क़ानूनों के विरोध में चल रहा है. विदेश की कोई मशहूर हस्ती इस आंदोलन पर ट्वीट करे, तो क्या वो भारत के आंतरिक मामले में दखल माना जाना चाहिए?
विवेक काटजू कहते हैं, "बिलकुल, माना जाना चाहिए. किसान आंदोलन पर टिप्पणी भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप है. ये नए कृषि क़ानून भारत के किसानों के लिए हैं. इन क़ानूनों से किसी दूसरे देशों पर कोई असर नहीं पड़ता. अगर कोई देश में ऐसा हादसा होता है, जिसकी वजह से दुनिया पर असर पड़ता है किसी क्षेत्र पर असर पड़ता है, या दुनिया पर असर पड़ता है, तब टिप्पणी जायज़ हो सकती है. लेकिन कृषि क़ानून पर जो भी फ़ैसले हैं, वो भारत के संविधान के तहत होंगे, उसका असर सिर्फ़ भारत पर पड़ेगा, दूसरे देश पर कोई असर नहीं होगा, तो ये भारत का आंतरिक मामला हुआ."
लेकिन देश के पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम का तर्क है कि किसान आंदोलन का मुद्दा मानव अधिकारों और आजीविका का मुद्दा है और इन मुद्दों को उठाने वाले लोग राष्ट्रीय सीमाओं को नहीं पहचानते हैं.
दरअसल रिहाना ने अपने ट्वीट में इंटरनेट पर पाबंदी का ही मुद्दा उठाया है. अपने नए ट्वीट में ग्रेटा ने भी मानवाधिकरों से जुड़ी बात की है.
इस पर विवेक काटजू कहते हैं, "मानव अधिकारों के उलंघन की जब बात आती है, तो हमें ये देखना होता है कि किस पैमाने/ डिग्री का उलंघन है. एक मामला होता है, जो सिस्टम में होता है, जैसे दक्षिण अफ्रीका में काले लोगों के साथ हो रहा था. वहाँ कालों के साथ भेदभाव सिस्टम के तहत हो रहा था. एक दूसरा मामला होता है प्रशासनिक काम में कोई क़दम उठाने की वजह से मानव अधिकारों का उलंघन, जैसा प्रदर्शन के दौरान क़ानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आप कोई क़दम उठा रहे हों. क्या ऐसे क़दम उठाने के लिए आपका क़ानून उसकी इजाज़त देता है. अगर लोकतंत्र है और न्यायिक व्यवस्था स्वतंत्र है, तो उसमें उन मानवाधिकारों को चुनौती देने की व्यवस्था है."
वो आगे कहते हैं कि इंटरनेट काटा तो कहाँ कटा, कितने दिन के लिए काटा उसको लेकर कोर्ट में क्या कहा, क़ानून के दायरे में रह कर काम हो रहा है या नहीं. इन तमाम बातों को देखने की ज़रूरत होती है.
लेकिन वो साथ ही ये भी कहते हैं कि इसका ये मतलब कतई ना निकाला जाए कि वे इस तरह के क़दम उठाने के समर्थक हैं.
भारत के किसान आंदोलन और अमेरिका के कैपिटल हिल हिंसा की तुलना कितनी सही?
कई लोग सोशल मीडिया पर ट्वीट कर ये भी पूछ रहे हैं कि भारत के प्रधानमंत्री द्वारा अमेरिका के कैपिटल हिल हिंसा पर फिर क्यों ट्वीट करते हैं. क्या वो आंतरिक मामला नहीं है.
पी चिदंबरम ने सरकार से ये भी पूछा है कि म्यांमार में सैन्य तख़्तापलट और नेपाल और श्रीलंका के मुद्दो पर भारत क्यों टिप्पणी करता है.
इस पर विवेक काटजू कहते हैं, "कैपिटल हिल हिंसा पर केवल भारत के प्रधानमंत्री ने ही ट्वीट नहीं किया, बल्कि दुनिया के कई दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने किया. यूरोप के बड़े देशों के लीडरों ने भी किया. वो ट्वीट ये दर्शाता है कि अमेरिका के उस हादसे का असर सब पर पड़ सकता था. अमेरिका की स्थिरता, वहाँ की व्यवस्था वो दुनिया की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है. अमेरिका दुनिया का सबसे ताक़तवर देश है. वहाँ के चुनाव के नतीज़ों पर प्रश्न चिन्ह लगने लगे, तो वो सिर्फ़ अमेरिका की बात नहीं रह जाती. उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ता है. उस हिंसा को ये मानना कि वो अमेरिका का अंदरूनी मामला है, ये ठीक नहीं होगा."
विवेक काटजू एक छोटे से उदाहरण से विदेशी मामले और आंतरिक मामले के अंतर को समझाते हैं.
अगर सिर्फ़ एक घर में आग लगे तो कोई दूसरा क्यों टिप्पणी करेगा. लेकिन उस आग की ज़द में दूसरे घर भी आएँगे, तो दूसरे घर वाले टिप्पणी करेंगे ही.
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source: bbc.com/hindi

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