श्रीलंका के राजा मेघवर्ण ने बोधगया के ताराडीह में बनाया था बौद्ध विहार, अब केवल अवेशष ही बचे

बोधगया [विनय कुमार मिश्र]। विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर के पश्चिमी दक्षिणी कोण पर स्थित ताराडीह सात सांस्कृतिक कालों के अवशेषों को समेटे है। लेकिन समुचित देखभाल के अभाव में वर्तमान में यह पूर्णतया उपेक्षित है। इस स्थल का उत्खनन वर्ष 1981 में बिहार पुरातत्व निदेशालय द्वारा कराया गया था। उत्खनन के दौरान नवपाषाण काल से लेकर पाल काल तक के सात सांस्कृतिक कालों के अवशेष श्रृखंलाबद्ध् रूप में प्राप्त हुए थे।

10 साल तक यहां चला पुरातत्विक उत्‍खनन
लगभग 10 वर्ष तक चले उत्खनन में से यह भी सिद्ध हुआ था कि श्रीलंका के राजा मेघवर्ण ने यहां पांचवीं शताब्दी में एक बौद्ध विहार का निर्माण कराया था। जो नालंदा और विक्रमशिला के सदृश्य था। यहां महायान परंपरा के तहत तंत्र ज्ञान विद्या की दीक्षा बौद्ध भिक्षुओं को आवासीय सुविधा उपलब्ध करा कर दी जाती थी। जिसका प्रमाण उत्खनन के दौरान मिले जले हुए चावल और बर्तन माना गया था। जिसे मुस्लिम काल में नालंदा और विक्रमशिला की भांति ध्वस्त कर दिया गया था।
बोधगया और पटना के संग्रहालय में रखे हैं अवशेष
उत्खनन से प्राप्त अवशेषों को बोधगया और पटना के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। बौद्ध विहार की दीवारें आज भी उत्खनन स्थल पर दृष्टिगत होती है। दीवारों पर वर्तमान में पौधे उगाए हैं। जानकार बताते हैं कि उत्खनन के दौरान तत्कालीन भारतीय पुरातत्व निदेशक डॉ प्रकाश चरण द्वारा एक करोड़ की परियोजना ताराडीह उत्खनन स्थल के विकास के लिए तैयार किया गया था। जिसकी आधारशिला वर्ष 2000 में सूबे के तत्कालीन कला, संस्कृति और युवा विभाग के मंत्री अशोक कुमार सिंह द्वारा रखी गई थी और इस स्थल का नया नामकरण गौतम वन पुरातत्व परिसर रखा गया था। उसके बाद उत्खनन स्थल की सुरक्षा और संरक्षण के लिए 10 लाख की लागत से चारदीवारी का निर्माण कराया गया था।
श्रीलंका के तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति ने किया था उल्‍लेख
बोधगया प्रवास पर आए श्रीलंका के दिवंगत राष्ट्रपति प्रेमदासा ने भी उत्खनन स्थल का भ्रमण कर ताराडीह को भारत और श्रीलंका के बीच संबंधों की सांस्कृतिक कड़ी बताया था और इस स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मंशा जाहिर की थी। लेकिन बाद में सुबे में सरकारें बदलती गई और योजना अधर में अटक गया आज यह उत्खनन महाबोधि मंदिर से सटे होने के बावजूद उपेक्षित है।

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