कोहबरी गांव में बच्चों को खेल-खेल में दी जा रही गुणात्मक शिक्षा, बिना किताब कॉपी बन रहे होनहार

[अमित कुमार सिंह] बाराचट्टी (गया)। गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड अंतर्गत कोहबरी गांव जंगलों के बीच काहुुदाग पंचायत में बसा है। पढ़ाई लिखाई से दूर रहने वाले यहां के लोग अब अपने बच्चों को शिक्षा देने के प्रति सजग होते जा रहे हैं। अनिल और रेखा दोनों मिलकर यहां के बच्चों को भ्रमण शिक्षा तथा बिना किताब के बोझ के बुनियादी और गुणात्मक शिक्षा दिला रहे हैं।

जो पढें वह पढाएं तब होगा बच्चों में आत्म बल
अनिल और रेखा का कहना है कि बच्चों की रुचि जिस पढ़ाई के प्रति हो वही पढ़ाएं इससे बच्चों में अपने आत्मबल का विस्तार होता है और उनके अंदर सुखद मजेदार और ज्ञानवर्धक अनुभूति प्राप्त होती है। परंतु आज के अभिभावक तथा शिक्षक बच्चों को नए परिवेश से पढ़ना पसंद करते हैं।
पुरानी परंपरा से शिक्षण कराने को लेकर अनिल और रेखा हुए हैं पुरस्कृत
सहोदय ट्रस्ट के द्वारा पर्यावरण संरक्षण व शिक्षण के कार्यों को देखकर बिहार के वन विभाग और दिल्ली के गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा ने 23 सितंबर 2019 और 1 दिसंबर 2020 को सम्मानित किया था। अनिल बताते हैं कि कोहवरी गांव एक जंगल में बसा है जहां आने और जाने का कोई रास्ता नहीं है।
संस्था नहीं पहुंचती तो बच्चे रह जाते अनपढ़
अनिल और रेखा कहते हैं कि इस गांव में अगर आकर हम लोग स्कूल नहीं खोलते संस्था के माध्यम से तो यहां के बच्चे अनपढ़ रह जाते हैं। हम लोग इन बच्चों को खेती,आनाज, सब्जी, फल, दाल, तेल, मौसम, जानवर, चिड़िया, पर्व त्यौहार, खेल, घर, कपड़े और गाड़ी को देखकर उनके बारे में वह अपना इस पर विचार रखते हैं। इतना ही नहीं यह बच्चे गांव और पर्यावरण की समस्या को भी अनुभव कर अपने माता पिता को समझाते भी हैं।
यहां के बच्चों में जंगली जानवरों तथा फूल पौधों की भी है ज्ञान
कोहबरी गांव के बच्चे सहोदय ट्रस्ट में पढ़ाई के साथ साथ जंगलों में जंगली पौधे फूल और फल को भी पहचानते हैं। जो घर उपयोग में आने वाले पौधे या फूल हैं उन्हें घर भी जंगल से तोड़ कर ला रहें हैं। यहां के बच्चों में जंगली चिड़िया तथा अन्य बच्चे जानवरों उनके घरों और अंडों को भी पहचानते उस समझते हैं और इससे प्रेरणा भी ले रहे हैं। जैविक तरीके से विविध प्रकार के पौधे और सब्जियों को कैसे लगाए जाते हैं और उन्हें बचाने की क्या व्यवस्था की जाती है इसकी भी शिक्षा इन बच्चों को बाल उम्र से दी जा रही है।
जिन बच्चों को हिंदी वर्णमाला का ज्ञान नहीं था आज वह कहानी लिखते हैं
सहोदय ट्रस्ट के संचालक अनिल और रेखा कहते हैं कि यहां के बच्चे अपने ढंग से किताबी पढ़ाई करते हैं। ग्रुप में, खुले में, और अपनी गति से अपने बनाए कर्म में अपनी स्थानीय भाषा में बात करते हुए बिना किसी भारी बस्ता के परीक्षा और गलती पर पड़ने वाले डांट तथा बिना बोझ के मजे के साथ हम दोनों प्राणी शिक्षा देने का काम कर रहे हैं। रेखा बताती है कि आज इन बच्चों के बीच परिणाम यह है कि जो बच्चे दो साल पहले यहां सीखने आए थे और हिंदी वर्णमाला भी नहीं जानते थे आज पांचवी की हिंदी चौथी की गणित तथा तीसरी की अंग्रेजी साथ में पढ़ते हैं इतना ही नहीं यह बच्चे कहानी लिखते हैं मैगी तथा हिंदी में स्थानीय गीत और कविता लिखते हैं।

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