जानकी वल्‍लभ शास्‍त्री जयंती विशेष: गया में महाकवि के पुस्‍तकालय में किताब की जगह बंदूकें, ज्ञान के मंदिर में थाना

गया, कमल नयन। मैं न बुझूंगी, अमरदीप की ज्वाला हूं, बाला हूं, पलभर किसी कंठ से लगकर छिन्न हुई माला हूं ...। ये पंक्तियां महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री की कविता 'अवंतिका' में हैं। यह उनके स्वभाव पर फिट बैठती है। तभी तो उन्होंने पद्मश्री की उपाधि लेने से इनकार कर दिया था। आज ही के दिन साल 1916 में उनका जन्‍म हुआ था। मुजफ्फरपुर में रहते हुए भी उन्हें अपना गया जिले का पैतृक गांव मैगरा याद रहा। तत्कालीन मुख्यमंत्री बिंदेश्‍वरी दुबे से कहकर गांव में एक भवन का निर्माण कराया जिसे 'भारतीय कुटीर' का नाम दिया गया। इसे उन्होंने पुस्तकालय का रूप दिया। पठन-पाठन की सामग्री उपलब्ध कराई। दुर्भाग्य यह कि 2015 में भवन में थाना खोल दिया गया। छह वर्षों से पुस्तकालय पुलिस के कब्जे में है। किताबों के मंदिर में बंदूकें सजती हैं।


(इसी आलमारी में बंद हैं पुस्‍तकालय की पुस्‍तकें।)
एसएसपी के आश्‍वासन के बावजूद नहीं हटा थाना, साहित्यकार हुए निराश
मैगरा निवासी डाॅ. राम परिखा सिंह कहते हैं कि ग्रामीणों ने कई बार थाना को स्थानांतरित करने की मांग प्रशासन से की, जो अनसुनी कर दी गई। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सुमंत कहते हैं कि दो-तीन साल पूर्व साहित्यकारों की एक टीम मैगरा गई थी। पुस्तकालय को पुलिस से मुक्त कराने की मांग तत्कालीन एसएसपी गरिमा मलिक से मिलकर की गई थी। उन्होंने आश्‍वस्त किया था कि जल्द ही मैगरा थाना का नया भवन बन जाएगा और पुस्तकालय पुन: अस्तित्व में आ जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

(पुस्‍तकालय में लगा थानेदारों का उत्‍तराधिकार पट्ट।)
गया में जन्म, काशी से पास की शास्‍त्री की परीक्षा
शास्त्री जी का जन्म गया जिले के शेरघाटी अनुमंडल के मैगरा गांव में 5 फरवरी 1916 को हुआ था। पिता पंडित रामानुग्रह शर्मा चाहते थे कि पुत्र विद्वान बने। तीन-चार वर्ष की आयु से ही उन्हें संस्कृत के श्‍लोक रटवाना शुरू कर दिया था। 1927 में बिहार उत्कल संस्कृत समिति की परीक्षा में प्रथम स्थान लाकर उन्होंने पिता की उम्‍मीदों को पूरा भी किया। 1930 में मध्यमा परीक्षा में प्रथम स्थान पाया। वे कालीदास की रचनाओं से प्रेरित हुए। विशेष अध्ययन के लिए काशी गए, जहां महामना मदन मोहन मालवीय के प्रिय पात्र बन गए। 1932 में शास्त्री की परीक्षा में प्रथम श्रेणी पाए तो उनके नाम के आगे शास्त्री शब्द जुड़ गया।
मुजफ्फरपुर के सरकारी संस्कृत कॉलेज में हुई नियुक्ति
मुजफ्फरपुर के सरकारी संस्कृत कॉलेज में शास्त्री जी की नियुक्ति 1944 में हुई। उसके बाद से उनकी कविताएं पुस्तक का रूप लेने लगीं। वे ऐसे कवि थे, जिन्हें बिहार राष्ट्रभाषा परिषद ने आचार्य शिवपूजन सहाय शिखर सम्मान और राजभाषा विभाग द्वारा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान से नवाजा गया था।

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