ग्‍यारह जनगणना में 443 फीसद बढ़ गई औरंगाबाद की आबादी, पिछली गणना में आई थी गिरावट

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद)। औरंगाबाद जिले की जनसंख्या (Population) प्रथम जनगणना (Census) के बाद हुई 11 जनगणना में 443.39 फीसद बढ़ गई है। दशकीय जनगणना का विश्‍लेषण करें तो 1901 में जिले की जनसंख्या 4 लाख 67 हजार 445 थी। यह 2011 की जनगणना 25 लाख 40 हजार 073 हो गई। जनसंख्‍या वृद्धि का औसत निकालें तो प्रत्‍येक जनगणना में यह 40 फीसद की दर से बढ़ी है।

पहली जनगणना में साढ़े चार लाख थी जिले की आबादी
वर्ष 1951 में औरंगाबाद जिले की आबादी 696115 थी। यह पिछले से करीब 48.91 फीसदी अधिक थी। इसके बाद 1951 से 2001 तक के पांच जनगणना में वृद्धि 189.18 फीसद हो गई। वर्ष 2001 में जिले की जनसंख्या 20 लाख 13 हजार 055 हो गई। जबकि 1991 में यह1539988 थी। यानी करीब 30.71 फीसद की वृद्धि। वर्ष 2001 और 2011 में हुई जनगणना में 26.18 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई। इस तरह से देखें तो वर्ष 2001 के बाद वृद्धि दर में कमी हुई है। यह सरकार के प्रयासों, शहरीकरण, शिक्षा को बढ़ावा से जोड़कर देखा जा सकता है। अब होने वाली दशकीय जनगणना से पता चलेगा कि रफ्तार बढ़ी या घटी है।
जनसंख्या नियंत्रण जन के लिए स्त्री शिक्षा, रोजगार व सशक्तीकरण आवश्यक
जिले की चिकित्‍सक डॉ. रंजू बताती हैं कि जनसंख्या नियोजन के लिए सरकारें तमाम उपाय करती रही हैं। इसके बावजूद इसका प्रभावी असर नहीं दिखा। इसकी कई वजह हैं। सरकार का दृढ़ निश्चय और ठोस कानून का अभाव महत्वपूर्ण कारक तो है ही। सरकार इसलिए भी गंभीर नहीं होती कि उसे वोट बैंक की चिंता होतीी है। ऐसे में आखिर जनसंख्या नियोजन का सबसे बेहतर उपाय क्या है? चिकित्सा पदाधिकारी डॉ.रंजू कहती हैं कि इसके लिए महिलाओं को शिक्षित करना होगा। उन्हें रोजगार से जोड़ना होगा। उनको सशक्त बनाना होगा। बिना स्त्री शिक्षा, रोजगार और सशक्तीकरण के जनसंख्या पर नियंत्रण संभव नहीं है। उन्होंने बताया कि शिक्षित महिला निश्चित रूप से अपने परिवार को नियोजित करके रखेंगी। बताया कि शिक्षित होने के बाद अपने सौंदर्य और शरीर के प्रति स्त्री में जागरूकता अधिक आती है। नौकरी मिलने के बाद स्वास्थ्य और समाज में जीने के तरीके में बदलाव आता है। कोई स्त्री रोजगार करने के बाद बार-बार बच्चा जन्मना नहीं चाहती। इसलिए यही तीन ठोस उपाय है, जिसे करके जनसंख्या को नियोजित किया जा सकता है।
पुत्र को लेकर समाज की धारणा भी कारण
विशेषज्ञों का मानना है कि बेटे में वंश वृद्धि और बुढ़ापे का लाठी देखने के साथ 'जितना हाथ उतनी कमाई' की धारणा समाज में व्याप्त है। इस कारण भी जनसंख्या नियोजन कारगर साबित नहीं हो पा रहा। चिकित्सा पदाधिकारी रहे डॉ.विनोद कुमार सिंह का मानना है कि 2 बच्चे से अधिक किसी परिस्थिति में अच्छा नहीं है। चाहे दोनों बच्चे बेटा हों या बेटी। बेटा सेवा करेगा, वंश वृद्धि होगी, ऐसी धारणा गलत है। बेटियां यदि सक्षम हो तो बेटे से बेहतर सेवा मां-बाप की करती हैं।
औरंगाबाद : दशकीय जनसंख्या
औरंगाबाद की 1901 से 2011 तक की जनसंख्या वृद्धि
वर्ष जनसंख्या

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