कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन पर देश के 75 पूर्व नौकरशाहों ने खुले पत्र के जरिए केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. खुले पत्र के जरिए पूर्व अफसरों ने कहा कि तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के जारी आंदोलन के प्रति केंद्र सरकार का दृष्टिकोण शुरू से ही प्रतिकूल और टकराव वाला रहा है.
संवैधानिक आचरण समूह (CCG) का हिस्सा रहे नजीब जंग, जूलियो रिबेरियो और अरुणा रॉय समेत 75 पूर्व नौकरशाहों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में यह भी कहा गया कि गैरराजनीतिक किसानों के साथ "एक गैरजिम्मेदार विपक्ष" की तरह से व्यवहार किया जा रहा है. यह भी कहा गया कि किसानों के आंदोलन को बार-बार असफल, क्षेत्रीय, सांप्रदायिक और अन्य कई तरह कमतर करने की कोशिश निंदनीय है.
पत्र में कहा गया है, "इस तरह के दृष्टिकोण से समाधान नहीं हो सकता है." आगे लिखा गया है कि यदि भारत सरकार वास्तव में एक सौहार्दपूर्ण समाधान में रुचि रखती है, तो 18 महीने तक कानूनों को स्थगित करने के आधे-अधूरे कदमों का प्रस्ताव देने के बजाय, वह इन कानूनों को वापस ले सकती है और अन्य संभावित समाधानों के बारे में सोच सकती है. संविधान में कृषि विषय राज्य सूची में है.
पत्र में आगे कहा गया, "हमने 11 दिसंबर 2020 को, किसानों के रुख का समर्थन करते हुए एक बयान जारी किया था. तब से लेकर अब तक यह महसूस हुआ कि बहुत अन्याय हुआ है और यह किसानों के साथ जारी है." पूर्व नौकरशाहों ने भारत सरकार से इस मुद्दे पर "सुधारात्मक कार्रवाई" करने का अनुरोध किया है, जिसके कारण "पिछले कई महीनों में देश में भारी उथल-पुथल मची हुई है."
पत्र में यह भी कहा गया है कि हम आंदोलनकारी किसानों के लिए अपना समर्थन देते हैं. पत्र में आगे लिखा है, "किसानों के आंदोलन को लेकर भारत सरकार का दृष्टिकोण शुरू से ही एक प्रतिकूल और टकराव से भरा रहा है.
पत्र में पूर्व आईएएस अधिकारियों में नजीब जंग, अरुणा रॉय, जौहर सरकार और अरबिंदो बेहरा के अलावा पूर्व आईएफएस अधिकारी केबी फैबियन, आफताब सेठ, पूर्व आईपीएस जूलियो रिबेरियो और एके समता सहित अन्य अफसरों ने हस्ताक्षर किए हैं.