साहित्य साधना के शिखर पुरुष थे आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री, जयंती पर महाकवि को दी गई श्रद्धांजलि

जागरण संवाददाता, औरंगाबाद। महाकवि जानकी वल्‍लभ शास्‍त्री सरस्वती के वरद् पुत्र थे। इसलिए उनकी रचनाओं में भाव गांभिर्यता के साथ ही, सरलता, तरलता एवं बोधगम्यता झांकती है। ये बातें संस्कृत के विद्वान डॉ. महेंद्र पांडेय ने कही। वे जवाबदेही परिवार के तत्वावधान में सत्येंद्र नगर स्थित कला कुंज में शनिवार को आयोजित महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री की जयंती समारोह में बोल रहे थे।

समाज सापेक्ष कवि थे आचार्य जी
अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार व हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. सिद्धेश्‍वर प्रसाद सिंह एवं संचालन शिक्षक उज्जवल रंजन ने किया। मौके पर सर्वप्रथम विद्वानों के द्वारा मां सरस्वती के छाया चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद महाकवि शास्त्री के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर चर्चा की गई। डॉ. सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने शास्त्री जी को अंतर्वस्तु की विविधता एवं समृद्ध वैचारिकी का कवि बताया। डॉ. शिवपूजन सिंह एवं पुरुषोत्तम पाठक ने शास्त्री जी के कुछ अत्यंत ही लोकप्रिय रचनाओं यथा'' किसने बांसुरी बजाई'' और'' ऊपर ऊपर पी जाते हैं जो पीने वाले हैं'' के माध्यम से उन्हें समाज सापेक्ष कवि बताया।
छायावाद के बावजूद जनसरोकार की सामग्री रही उनकी रचनाओं में
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि छायावाद के पांचवें स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित होकर भी शास्त्री जी छायावाद के संस्कारों से ही बंधे न रहे, उनकी दृष्टि में विस्तार आता गया एवं जन सरोकार एवं लोक कल्याण की सामग्रियां उनकी रचनाओं में पिरोयी जाती रहीं। उनका विराट व्यक्तित्व मात्र मानवीय संवेदना तक ही सीमित न होकर पशु-पक्षियों के लिए भी उतना ही समर्पित था। ऐसे सपूत साहित्य साधक को पाकर मगध की धरती आज भी गौरव की अनुभूति कर रही है। इस मौके पर और जिन लोगों ने अपनी श्रद्धां निवेदित की, उनमें युवा कवि धनंजय जयपुरी, शिक्षक चंदन कुमार, नंद कुमार सिंह, हिंदी साहित्य सम्मेलन के महामंत्री मिथिलेश मधुकर, केडी पांडेय, शिव शिष्य पुरुषोत्तम पाठक एवं अनिल सिंह सहित प्रमुख रहे। आयोजन में कुमारी चिंकी एवं हिमांशु भी सक्रिय रहे।

अन्य समाचार