अब साल में दो बार तैयार होगी मखाना की फसल

पूर्णिया। मखाना की फसल अब साल में दो बार तैयार हो सकेगी। भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय ने इसके लिए नया प्रभेद (जीनो टाइप-41) विकसित किया है। फिलहाल इसका ट्रायल चल रहा है। सबकुछ ठीक रहा तो जल्द ही यह किसानों को उपलब्ध करा दिया जाएगा। साल में दो बार खेती होने से जहां पैदावार बढ़ेगा, वहीं किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।

कोसी इलाके में पानी की अधिकता के कारण मखाना की खेती बड़े पैमाने पर होती है। यहां साल में एक बार मखाना लगाया जाता है। यह खेती फरवरी-मार्च में होती है, जबकि बारिश के दिनों में पानी की अधिकता हो जाती है और दूसरी फसल नहीं लगाई जाती है। अब अधिक पानी में भी नई प्रजाति के बीज से खेती हो सकेगी। मखाना अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. अनिल कुमार बताते हैं कि नए प्रभेद का ट्रायल आखिरी दौर में है। इसके सार्थक परिणाम मिले हैं।
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फरवरी और जुलाई में हो सकेगी जीनो टाइप-41 की बोआई
जीनो टाइप-41 की बुआई फरवरी के अलावा जुलाई में भी की जा सकेगी। यह फसल दिसंबर में निकाली जाएगी। देसी किस्म का उत्पादन जहां 20-21 क्विटल प्रति हेक्टेयर होता है, वहीं इसका उत्पादन 35-36 क्विटल प्रति हेक्टेयर है। लावा भी देसी किस्म के मुकाबले 35-40 प्रतिशत अधिक निकलता है।
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मखाना-वन से सर्वाधिक उत्पादन
इसके पहले सबौर मखाना-वन किस्म विकसित की गई थी। यह विश्व में मखाना की सबसे अधिक उपज देती है। इसका 26 हेक्टेयर में अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार और सहरसा में किया गया है। विदेशों में है मखाना की मांग
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मखाना उत्तम खाद्य होने के साथ-साथ कई रोगों के उपचार में फायदेमंद है। इसमें प्रोटीन एवं स्टार्च भरपूर मात्रा में होती है। वसा की कम मात्रा होने के कारण विकसित देशों में इसकी काफी मांग है। वहां मोटे लोगों के लिए इसे उत्तम आहार माना जाता है। कोसी के इलाके में स्थिर पानी वाले जलाशयों के कारण इसके उत्पादन की व्यापक संभावना है। यहां के मखाना की मांग विदेशों में भी काफी है। कोट:-
महाविद्यालय के विज्ञानी मखाना की नई किस्म विकसित कर रहे हैं। जल्द ही यह किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा। इस बीज से किसान दो बार मखाना की खेती कर सकेंगे। इससे मखाना की अधिक पैदावार होगी। किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।
डॉ. अनिल कुमार, प्रधान मखाना अन्वेषक, भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णिया
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