बेनीपट्टी के एकमात्र क्लस्टर की हालत दयनीय, 26 की जगह मिले बस चार लाख

मधुबनी। कोरोना काल में बाहर से घर पहुंचने वाले हुनरमंद लोगों को रोजगार मुहैया कराने के लिए जिले के बेनीपट्टी में एक क्लस्टर की शुरुआत की गई थी। इस क्लस्टर को 26 लाख की जगह मात्र चार लाख रुपये दिए गए। वर्तमान में इस क्लस्टर की हालत खराब बनी है। बेनीपट्टी के क्लस्टर में 12 लोगों का ग्रुप बनाया गया था। ग्रुप के माध्यम से तैयार फर्नीचर की बिक्री की जाती थी। बिक्री से होने वाली आमदनी ग्रुप के सभी सदस्य बांट लेते थे। विभाग द्वारा इस क्लस्टर को टूल्स दिए गए थे। लकड़ी की खरीदारी इन्हें स्वयं करना था। बाहर से लौटे लोगों को फिर से पलायन कर जाने से अब स्थानीय लोग ग्रुप बनाकर फर्नीचर का काम करते हैं। इसी तरह खुटौना में गारमेंट के लिए कलेक्टर बनाया गया था। खुटौना कलस्टर अब तक शुरू नहीं हो सका है। बेनीपट्टी के अलावा जिले में चार अन्य क्लस्टर बनाने की योजना फाइल में अटकी पड़ी है। जिला उद्योग कार्यालय के महाप्रबंधक विनोद शंकर सिंह ने बताया कि कोरोना काल में जिले में ट्रेनिग कि कहीं कोई व्यवस्था नहीं की गई थी।


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गांव में रोजगार की कमी, पलायन बनी मजबूरी :
लॉकडाउन अवधि में गांव लौटे जिले के करीब एक लाख श्रमिकों से अधिकांश श्रमिक रोजगार के लिए करीब चार महीनों तक जिले में गुजारने के बाद परदेस लौट गए। परदेस में काम कर अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले मजदूर लॉकडाउन में रोजी-रोटी छिन जाने से अपने घर को आ गए थे। प्रवासी मजदूर कोरोना संकट खत्म होने का इंतजार कर रहे थे। मनरेगा से काम देने की बात भी हवा-हवाई साबित हुई। कोरोना काल में राज्य एवं केंद्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर पर ही रोजगार देने का आश्वासन दिया गया था।
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घर लौट मजदूरों को रास नहीं आया मनरेगा :
लॉकडाउन में लौटने वाले मजदूरों को मनरेगा रास नहीं आई। गांवों में अब भी सड़क, संचार, स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं शहरों की तुलना में बेहद कम है। गावों में आधारभूत ढांचे की कमी भी पलायन की वजह रही है। लॉकडाउन में घर वापस पहुंचे पिलखवार गांव के शंकर चौधरी वर्तमान में दिल्ली में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि घर पहुंचने पर गांव में ही रोजगार शुरू करने का मन बनाया था। मगर, पूंजी के अभाव में परदेस लौटना पड़ा। फिलहाल परिवार के भरण पोषण के लिए दिल्ली में कार्य कर रहे हैं।
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परिवार का गुजर बसर करने में आ रही थी मुश्किलें :
लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया। कोरोना काल में भी मजदूरों और कामगारों को रोजगार उपलब्ध कराने की घोषणाएं काम नहीं आया। रोजगार सृजन की बात कारगर साबित नहीं हुआ। कोरोना बाद बदले हालात में गांवों में रोजगार के अभाव में लोगों को परिवार का गुजर बसर करने में काफी मुश्किलों भरा साबित हो रहा था। कोरोना काल में भी मजदूरों और कामगारों को लेकर सरकारी घोषणाएं तो हुई। घोषणाएं धरातल पर दम तोड़ चुकी हैं।
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