सहेज लो हर बूंद::::: बूंदों को तरस रही कल-कल बहने वाली तिलावे

शशि कुमार, लौकहा बाजार (सुपौल) : जो कल तक कल-कल करती थी आज खुद बूंदों को तरस रही है। हम बात कर रहे हैं सदर प्रखंड के हरदी-चौघारा गांव के समीप मशहूर नदी तिलावे की। जो निरंतर हो रहे विकास के ददौर में आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब केवल नक्शे में ही दिखाई देगी तिलावे नदी। कालांतर में चट्टानों को तोड़कर अविरल बहने वाली नदी आज सूखी पड़ी है। यह कोसी क्षेत्र के साथ-साथ मानव जीवन के लिए शुभ संकेत नहीं माना जाएगा। नदी किनारे बसे गांवों के जलस्तर में भी काफी कमी आई है। नदी में पानी नहीं रहने के कारण कृषि भी प्रभावित हुई है तथा सुदूर ग्रामीण इलाकों में मवेशी पालन करने वाले लोगों को भी बहुत परेशानी होती है। एक तो नदी पानी को तरस रही है और उपर से अतिक्रमण का शिकार भी होती जा रही है। जिस कारण नदी का अस्तित्व मिटने की कगार पर है। नदी के बारे में गांव-समाज में एक कहावत काफी प्रचलित रही कि सुखलो तिलावे हिलाबे। यह कहावत उस वक्त के इस नदी के तेवर की ओर इशारा करती है कि कम पानी रहने के बावजूद यह किस कदर लोगों को अपने होने का अहसास कराया करती थी। यदि नीति नियंताओं की कृपा दृष्टि पड़े तो फिर से यह नदी इस इलाके के आम-आवाम के लिए जीवनदायिनी बन जाएगी।


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