अध्यात्म और धर्म की देन है चैत्र नवरात्र: आचार्य

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार (सुपौल): चैती नवरात्र मंगलवार से आरंभ हो रहा है। भारतीय अध्यात्म और धर्म में जितने भी प्रकार के व्रत-उपवास का विधान किया जाता है नवरात्र उनमें सबसे श्रेष्ठ है। चैत्र नवरात्र वासंतिक नवरात्र कहलाता है। ऋतुओं का यह संधिकाल मनुष्य के स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं होता। बदलते मौसम में चैत्र नवरात्र का व्रत-पूजा, उपासना आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है। चैत्र नवरात्र का पर्व आध्यात्म और धर्म की ही देन है। यह साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी करता है। इस बार चैत्र नवरात्र चैत्र शुक्ल पक्ष में 13 अप्रैल यानि मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र के योग से सर्वार्थ सिद्ध योग के साथ अमृत योग में होने से अमृतत्व की प्राप्ति करवाएगा। चैत्री नवरात्र के महात्म्य पर प्रकाश डालते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि पुराणों के अनुसार अमावस्या से संयुक्त प्रतिपदा तिथि में नवरात्र शुरू करने से कई तरह के अमंगल होते हैं। इसलिए कलश स्थापना के लिए द्वितीया से युक्त प्रतिपदा ही शास्त्र विहित है। पुराणों में नवरात्र का व्रत का विधान विस्तार से बताया गया है। महर्षि वेद व्यास ने जन्मेजय को पवित्र नवरात्र के व्रत का विधान इस तरह बताया था। यह व्रत पूरी श्रद्धा, विश्वास और प्रसन्नता के साथ बसंत ऋतु में मनाना चाहिए, जो भी मनुष्य शुभ मंगल की कामना करता है, उसे चैत्र नवरात्र व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए। इस ऋतु में यह व्रत इत्यादि विधि-विधान से करने से समस्त प्रकार के रोग शांत होते हैं। साथ ही सुख-संपदा प्राप्त होती है। नवरात्रि के नौ दिनों के पूजन में नवार्णमंत्र का जप करने से समस्त प्रकार के मनोवांछित फलों की प्राप्ति संभव हो जाता है।

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कलश स्थापना का मुहूर्त
आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि इस बार 13 अप्रैल यानि मंगलवार को प्रथम मुहूर्त में कलश स्थापना प्रात: काल सूर्योदय से लेकर 7 बजकर 15 मिनट तक तथा दूसरे मुहूर्त में सुबह 8 बजकर 45 मिनट से दिन के 1 बजकर 30 मिनट तक है। साथ ही आचार्य ने बताया कि शास्त्रों में कहा गया है कि पूर्वाह्न में आह्वान तथा विसर्जन करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है एवं देवी प्रसन्न होती हैं। इसलिए पूर्वाह्न में कलश स्थापना मुहूर्त अति शुभ माना गया है।
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अश्व पर होगा माता का आगमन
आचार्य धर्मेंद्रनाथ ने बताया कि इस बार चैत्र नवरात्रा में मां भगवती तुरंगम (अश्व) पर विराजमान होकर आएंगी तथा महिष पर सवार होकर प्रस्थान करेगी। भगवती का तुरंगम पर आगमन का फल राजनीतिक उथल-पुथल, प्राकृतिक आपदा आदि को प्रदान करने वाला होगा। वहीं महिष पर प्रस्थान करेगी जो रोग, शोक, आपदा, भूकंप आदि की संभावना प्रकट करता है। इसलिए पूर्ण विधि-विधान तथा भक्तिपूर्वक नवरात्रि में मां दुर्गा की आराधना से मानव जाति का कल्याण तथा सभी प्रकार के बाधाओं से मुक्ति मिलेगी।
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